1 जिन्दगी
जिन्दगी होती जो गीत
तो गुनागुना लेती मैं
बिना साजो के भी
राग बना लेती मै
शब्दों का हाथ थाम
भावों के संग चल देती मैं
क्या जानती थी कि
जिन्दगी सुरों का संगम नहीं
जंग है ये परिस्थितियों की
इसी लिए संघर्ष की ताल ले
जिन्दगी के कटु घरातल पर
थिरका करती हूँ मैं ।
2 ‘’शर्म’’
शर्म नहीं आती
बीस बरस की हो
और
अब भी गुब्बारे खरीद, खेलती हो ।
आती है शर्म
देख
उम्र है जिनकी खेलने की
वो
बेचा करते हैं गुब्बारे ।
3 प्रवाह
नई मुलाकात ने
दी दस्तक
जीवन प्रवाह की
धारा तो बहती है
खामोश कहती है
थाम लो हाथ मुसाफिरों
मै
रुख बदलने को हूँ।
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जीवन प्रवाह की
धारा तो बहती है
खामोश कहती है
थाम लो हाथ मुसाफिरों
मै
रुख बदलने को हूँ।
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