पथ के साथी

Wednesday, December 21, 2016

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 1-माँ से कुछ बातें
सत्या शर्मा कीर्ति’  ( राँची)
सत्या शर्मा कीर्ति
माँ कहनी है तुमसे कुछ अनकही- सी बातें
कई बार चाहा कह दूँ  तुमसे हर वो बात
पर कहाँ था वक्त तुम्हारे पास
तुम भागती रही सफलता और
शोहरत के पीछे
और मैं अकेली ही उलझती रही
तुम्हें समझने में ,
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का
जानें कितनी अँधेरी डरावनी रातें
सिर्फ तुम्हारे मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुज़ारी  हैं

बहुत ढूँढा तुम्हें माँ
जब बचपन बदल रहा था यौवन में
समझनी थी कितनी अनसुलझी -सी बातें पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं
माँ तुम्हारे ही कोख से जन्मी
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से महरू
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने ली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में 
माँ  वाला प्यार...
अभी भी कहनी है तुमसे कुछ बातें ...
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2-कलम
 डॉ मधु त्रिवेदी  ( आगरा)
सूरज की पहली किरण के साथ
कुछ कहने को  कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
    
पर कलम चुप थी
कुछ दुनियादारी के बोझ तले मैं
कुछ अप्रकट अहसासों में दबी मैं
अशांत भावनाओं के वेगों में घटी
      
पर कलम चुप थी
कुछ खोज रही थी शून्य में ताकते
जा टिकी दृष्टि पास पड़े अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
     
पर कलम चुप थी
नेह -भरी कोमल यादों का चिंतन
अपना -सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
       
पर कलम चुप थी
शब्द भी सिहरकर सिसकने को बेताब
आँसू रोकर कहने को हाल -बेहाल
भावना के वेग में अज्ञात दोहरा पर
         
पर कलम चुप थी

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