पथ के साथी

Showing posts with label डॉ. मधु त्रिवेदी. Show all posts
Showing posts with label डॉ. मधु त्रिवेदी. Show all posts

Wednesday, December 21, 2016

699

 1-माँ से कुछ बातें
सत्या शर्मा कीर्ति’  ( राँची)
सत्या शर्मा कीर्ति
माँ कहनी है तुमसे कुछ अनकही- सी बातें
कई बार चाहा कह दूँ  तुमसे हर वो बात
पर कहाँ था वक्त तुम्हारे पास
तुम भागती रही सफलता और
शोहरत के पीछे
और मैं अकेली ही उलझती रही
तुम्हें समझने में ,
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का
जानें कितनी अँधेरी डरावनी रातें
सिर्फ तुम्हारे मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुज़ारी  हैं

बहुत ढूँढा तुम्हें माँ
जब बचपन बदल रहा था यौवन में
समझनी थी कितनी अनसुलझी -सी बातें पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण , लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिह्न (?)थी मैं
माँ तुम्हारे ही कोख से जन्मी
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से महरू
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने ली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में 
माँ  वाला प्यार...
अभी भी कहनी है तुमसे कुछ बातें ...
-0-
2-कलम
 डॉ मधु त्रिवेदी  ( आगरा)
सूरज की पहली किरण के साथ
कुछ कहने को  कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
    
पर कलम चुप थी
कुछ दुनियादारी के बोझ तले मैं
कुछ अप्रकट अहसासों में दबी मैं
अशांत भावनाओं के वेगों में घटी
      
पर कलम चुप थी
कुछ खोज रही थी शून्य में ताकते
जा टिकी दृष्टि पास पड़े अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
     
पर कलम चुप थी
नेह -भरी कोमल यादों का चिंतन
अपना -सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
       
पर कलम चुप थी
शब्द भी सिहरकर सिसकने को बेताब
आँसू रोकर कहने को हाल -बेहाल
भावना के वेग में अज्ञात दोहरा पर
         
पर कलम चुप थी

-0-

Saturday, December 10, 2016

696



1-मंजूषा मन
1
कैसे बोलो सौंप दे, जब है मन पर शाप ।
मन से मन को जोड़कर, दुख पाएँगे आप
2
यादों से मिटती नहीं, दर्द भरी थी रात।
हमको तो बस है मिली, आँसू की सौगात।।
3
कोई अब रखता नहीं, मन दरवाजे दीप।
आस लगा जिनसे चले, नहीं समीप।।
-0-
2-श्वेता राय
कह न पाऊँ बात मन की, दिल बड़ा बेचैन है।
याद तेरे साथ की प्रिय!, छीनती अब चैन है।।
पास थे तुम जब लगे सब, है ख़ुशी मेरे लि
मैं बनूँ चंदा कभी तो, चाँदनी तेरे लि।।

दिन लगा के पंख उड़ता, रात कटती थी नयन।
आस में तेरे मिलन के, जागती थी मैं मगन।।
सोचती थी क्या कहूँगी, जब मिलोगे तुम सजन।
भूल सारी बात जाती, देखती तुमको भवन।।

कर रहे वापस मुझे तुम, दिल लिया जो प्यार से।
आस से विश्वास से औ, प्रीत की मनुहार से।।
खुश रहोगे यदि सदा तुम, याद मत करना मुझे।
भूल कर भी दर्द कोई, अब नही सहना मुझे।।
-0-
3-लीक से हट कर
डॉ मधु त्रिवेदी
कुछ अलग लिखा जा
लीक से हट कुछ किया जा
विषमता में समानता लाकर
हर व्यक्ति को खुशहाल किया जा
कर रहे है जो देश को खोखला
उनका काम तमाम किया जा
भारत में ही रहते है
यहीं फलते फूलते
असहिष्णुता जैसे बयान देते है
उनको देश से बाहर किया जा
ऊपर से नीचे तक जो गन्दगी
उसको साफ किया जा
सत्ताधारियों के बीच साक्षरता
स्तर को बढ़ाया जा
राजनीति के उच्च पदों को
पढे लिखों से
गौरवान्वित किया जा
सब लोगों को मिलें नौकरी
ऐसा कुछ किया जा
बड़े बूढ़े हो समृद्ध
मिलें बच्चों को छत्र छाया
ऐसे संस्कार दिये जाएँ
रहे कोई भूखा- नंगा
दो वक्त की रोटी मिले सबको
ऐसा इन्तजाम किया जा
चाँद तारों से करे बातें
ऐसा काम किया जा
-0-

Thursday, December 8, 2016

695



1-क्षणिकाएँ - शशि पाधा
1
अब
ना वो कौड्डियाँ
ना गीट्टियाँ
ना परांदे
ना मींडियाँ
ना टप्पे
ना रस्सियाँ
ना इमली
ना अम्बियाँ
कहाँ गई
वो लडकियाँ !!!!!!
2
आज फिर
बचपन आ बैठा
सिरहाने
और मैं
झिर्रियों से झाँकती
धूप को
मुट्ठियों में
भरती रही ।
3
हवाएँ
तेज़ चलती रही
सर्दी
बदन चीरती रही
धूप बदली की ओट
छिपती रही
और यह
इकलौता फूल
सूखी टहनी पर
इठलाता रहा
कितना जिद्दी है ना वो
मेरी तरह ।
-0-
*कौड्डियाँडोगरी भाषा  में कोड़ियों के लिए प्रयुक्त शब्द
-0-
2-आवारा-डॉ. मधु त्रिवेदी

मैं बन जाऊँ पंछी आवारा
आवारा ही रहना चाहूँ
मद मस्त चाह है मेरी
नील गगन में ही रहना चाहूँ
जब  याद आये धरती
इस पर रहने वालों की
तो मिलने चला आऊँ
देख सुन्दर धरती यही बस जाऊँ
इतने सुंदर लोग यहाँ के
पर बँधन में नहीं बँधना
आवारा हूँ
आवारा ही रहना चाहता हूँ
बैठ डाल पात पर
मीठे फल कुतरता
हर गली मुहल्ले और शहर
दुनियाँ दूर देश की सैर करता
दुनिया में डोल -डोल
सुंदर- सुंदर देशों को देख आऊँ
ना कोई कुछ कहने वाला
न कोई कुछ सुनने वाला
मन मर्ज़ी करने वाला
रोक -टोक ,मान -मर्यादा की
न मैं चिन्ता करने वाला
आवारगी में रहता मैं हर वक्त
ना अपनी चिंता करूँ
ना करूँ किसी ओर की
मिले जन्म धरती पर मुझे
तोता मुझे बनाना
बैठ जाऊँ- ऊँची डाल
फिर न बुलाना
मैना से ब्याह रचाऊँ
ना कोई दीवार जाँति-पाँति की हो
ना कोई भेदभाव हो
न कोई ढोंग- दिखावा हो
न मजहब के नाम पर
कोई खून राबा हो
बस एक इन्सानियत का रिश्ता हो
जीवन का अटूट बन्धन हो
-0-

3-मुश्किलों को देखकर- डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्माअरुण


मुश्किलों  को  देख कर  जो हारता है।
दुश्मन है अपना,वो खुद को मारता है।

कर्मवीर चलते सदा,लेके सरपे कफ़न,
कमबख्त है जो मुश्किलों से हारता है।

जिसको मिली हिम्मत वही आगे चला,
जो है बुज़दिल वो तो बहाने मारता है।

डरने वाला डूबता है नाव के संग भी,
साहसी तो सब को लेकिन तारता है।

मंज़िल हमेशा ही मिली बस वीर को,
जो डरा वो तो 'अरुण' नित हारता है।
-0-पूर्व प्राचार्य,74/3,न्यू नेहरू नगर,रुड़की-247667
-0-
4-भोर-भोपुरी गीत
 श्वेता राय

चिरईंन के बोली मचावे ला शोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर

ऊषा अइलिन लेहले भाँवर।
शोभे उनकर रूपवा साँवर।
ललकी टिकुलिया छिटकावे अँजोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर

राह चनरमा गई लें भुलाइल।
जोन्हीं सगरी फिरत लुकाइल।
शीतल बयरिया बहे ला झक झोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर

साजल बाजल सगरी नगरिया।
महकल फुलवा भर के डगरिया।
दिन दुपहरिया लागे ला चित चोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर

पायल कनिया रुनझुन बाजे।
घरवा दुअरवा  निम्मन साजे।
मन्दिर के घंटी बाजे ला पुरजोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
-0-