पथ के साथी

Sunday, April 29, 2018

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कमला निखुर्पा
1
जब-जब बिखरा है नीम  अँधेरा,
तेरे नेह से भरा  मेरे नैनों का दिया।
मधुर-मधुर जली यादों की बाती ,
जगमग हुई  मन- देहरी।
2
भली-भली- सी
गुलाबी कली
खिलने चली
संग हवा के
महकी-झूमी
पंख- पंखुड़ी लगा
उड़ने चली
छुए जो भंवर
काँपी-सिहरी
3
झील- दर्पण 
बादलों के ओट से
निहारता  रहा
खुद को रात भर चाँद
सूरज को देख अब आई है लाज
उड़ा-उड़ा है रंग आज  
4
था बहुत बड़ा शून्य
मेरे अस्तित्व के संग  ,
समेटा तुमने जो अंक में अपने ,
अनमोल होने का एहसास हो गया ।
5
‘विस्मय’ के संग
खड़ी थी जिंदगी
जाने कितने ‘प्रश्नचिह्नों’ से घिरी
खोजती हर सवाल का जवाब
ढूँढती रही
नन्हा-सा ‘अल्प विराम’
पर हर बार घिरी ‘उद्धरणों’ से
तो अपने ही ‘कोष्ठकों’  में बंद हो गई
लगा के ‘पूर्ण विराम’।
6
एक पल
देता सब कुछ बदल
क्षण में स्वर्ग सजे
पल में नरक रचे
बिताए कैसे धरती
वो एक पल
7
डरी- सहमी हैं
भेड़ -सी मासूम बेटियाँ
जाने कब कोई भेड़िया
नोच ले बोटियाँ
दहशत में माँएँ
काश कि कोख में छुप जाएँ  
ये नन्हीं सी गुड़िया।
8
सुबह से ही
आसमान में  मंडरा रहे हैं
चीलों के झुण्ड
जरूर कहीं किसी चिरैया के
घायल हैं पंख ।
9
वर्तमान की गोद में
नन्हा भविष्य लहूलुहान
अतीत फिर भी महान ।
10
चलती कलम
वर्तनी की त्रुटि
लाल सियाही का गोला
सुधार देती है इमला बच्चों का  
चलती जुबान की गलती
कभी होगी गोलबंद ?
-०- प्राचार्या  केन्द्रीय विद्यालय पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड)