पथ के साथी

Friday, November 25, 2011

आँखों में दरिया (माहिया)


माहिया पंजाब के प्रेम गीतों का प्राण है । पहले इसके विषय प्रमुख रूप से प्रेम के दोनों पक्ष- संयोग और विप्रलम्भ रहे  हैं।वर्तमान में इस गीत में सभी सामाजिक सरोकारों का समावेश होता है । तीन पंक्तियों के इस छ्न्द में पहली और तीसरी पंक्ति में 12 -12 मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ
होती हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकान्त होती है ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
आँसू जब बहते हैं
कितना दर्द भरा
सब कुछ वे कहते हैं।
2
ये भोर सुहानी है
चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें
सूरज सैलानी है ।
3
मन-आँगन  सूना है
वो परदेस गए
मेरा दु:ख दूना है।
4
मिलने का जतन नहीं
बैठे चलने को
नयनों में सपन नहीं।
5
यह दर्द नहीं बँटता
सुख  जब याद करें
दिल से न कभी हटता ।
6
नदिया यह कहती है-
दिल के कोने में
पीड़ा ही रहती है ।
7
यह बहुत मलाल रहा
बहरों से अपना
क्यों था सब हाल कहा।
8
दिल में तूफ़ान भरे
आँखों में दरिया
हम इनमें डूब मरे।
9
दीपक -सा जलना था
बाती प्रेम -पगी
कब हमको मिलना था।
10
तूफ़ान-घिरी कलियाँ
दावानल लहका
झुलसी सारी गलियाँ।
21/11/11

Monday, November 21, 2011

हाइकु मुक्तक


हाइकु मुक्तक
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
सपने लाख / जतन से पालना / टूट जाते हैं
प्यार करते / जान से ज्यादा भी / रूठ जाते हैं
हमें न डर / कि अनजान धोखा / दे सकता है
घेरे हमें जो / रात -दिन सगे ही / लूट जाते हैं । ।
2
मिलेंगे रास्ते / या भटकाव होगा / झेलना होगा
मिलेंगे फूल /या अंगार उनसे / खेलना होगा
चौराहे पर / गले रोज़ मिलतीं / हमें बाधाएँ
चुनौती बनी / ज़िन्दगी पापड़ तो /बेलना होगा
3
लौटेंगे वो भी / मौसम भी ,आवाज़ / लगाके देखो
दिल दरिया / से दो घूँट प्यार के /पिलाके देखो
दुश्मनों की भी / मिलती सरहदें / मज़बूरी है
दर्द समझो / इस बार दिल भी / मिलाके देखो । ।
4
दु:ख सहके /आखिरी दम तक /निभाए रिश्ते
हम थे अच्छे /सभी को उम्रभर /थे भाए रिश्ते
आज हमने । दो घूँट पानी माँगा /तो यह जाना
द्वार थे बन्द / जरा भी किसी काम /न आए रिश्ते
5
परदेस में /ज़रा -सी हूक उठी / भीगे नयन
जान ही लिया / उसने, रोया होगा / मेरा ये मन
इस जहाँ में / कभी बाधक नहीं / दूरियाँ होतीं
भाव का रिश्ता / पढ़ लिया करता/ हर कम्पन । ।
6
मिले हैं रोज़ /चौराहों पर लाखों / मिटाने वाले
नौसीखिए भी / बन गए हैं पाठ / पढ़ाने वाले
साथ तुम हो /परस का जादू है / प्यार तुम्हारा
चलेंगे साथ / तो हार ही जाएँगे / झुकाने वाले । ।
7
टकरा गया / सुधियों के तट से / भाव का जल
खिल उठे थे / कुछ एक पल में / सारे कमल
मुस्कुरा उठी / चाँदनी-सी निर्मला /झील मन की
शीतल हुए / तुम्हारे दरस से / नैन बेकल । ।
8
स्वार्थ का बोझ / शिला बन जाए तो /भार हैं रिश्ते
नेह के मेघ/ न बरसे तो बनें / थार हैं रिश्ते
इस जग में / अगर चाहो रहे / आदमी ज़िन्दा
सूखते दिल /सींच दो मिलकर / प्यार हैं रिश्ते । ।
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Wednesday, November 16, 2011

एक उदास लड़की के लिए


एक उदास लड़की के लिए
छाया:रोहित काम्बोज
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
आँधी आई धूल उड़ाती
पेड़ों के कान मरोड़ती ,
उन पेड़ों के
जो धरती की छाती पर
पैर रखकर बरसों से खड़े थे
धरती में बहुत गहरे गड़े थे,
डालियाँ झकझोरतीं
टहनियों की बाहें मरोड़ती ;
पेड़ कराह उठे
कुछ जड़  से उखड़ गए
कुछ की डालियाँ झूल उठी
टूट गईं
कुछ की नई टहनियाँ
कुछ ही झोकों में रूठ गईं
देखते ही देखते
हरे -भरे उपवन उजड़ गए।
पत्ते -
कुछ झोंको में झड़ गए ,
नन्हीं -सी घास
आँधी की मार से हर बार
झोंकों के सामने सिर झुका लेती
तूफ़ान टकराता
साँड की तरह डकराता
लाल -लाल आँखे किए
धूल के गुबार उड़ाता
घास मुस्कराती,
बार -बार लचक जाती
अन्धड़ हो जाता पसीने -पसीने
और वह नन्हीं -सी निमाणी -सी घास
ज़मीन की सतह तक झुककर भी
छाया:रोहित काम्बोज
तूफ़ान के गुज़र जाते ही
उठकर खड़ी हो जाती
इस तरह
वह नन्हीं-सी निमाणी -सी घास
बड़े -बड़े दरख्तों से
बड़ी हो जाती ।
तूफ़ान के थमते ही
आ जाती नन्हीं -सी गिलहरी
पा जाती कुछ दाना-पानी ;
खिड़की के पास बैठी
गूगल से साभार
उदास लड़की
देखती यह सब एकटक
उदासी की धूल झाड़कर
हौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
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Sunday, November 13, 2011

मुखौटा



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नेताजी को चुनाव लड़ना था। जनता पर उनका अच्छा प्रभाव न था। इसके लिए वे मुखौटा बेचने वाले की दूकान में गए। दूकानदार ने भालू, शेर, भेडिए,साधुसंन्यासी के मुखौटे उसके चेहरे पर लगाकर देखे। कोई भी मुखौटा फिट नहीं बैठा। दूकानदार और नेताजी दोनों ही परेशान।
दूकानदार को एकाएक ख्याल आया। भीतर की अँधेरी कोठरी में एक मुखौटा बरसों से उपेक्षित पड़ा था। वह मुखौटा नेताजी के चेहरे पर एकदम फिट आ गया। उसे लगाकर वे सीधे चुनावक्षेत्र में चले गए।
परिणाम घोषित हुआ। नेताजी भारी बहुमत से जीत गए। उन्होंने मुखौटा उतारकर देखा। वे स्वयं भी चौंक उठेवह इलाके के प्रसिद्ध डाकू का मुखौटा था।

Friday, November 11, 2011

हिन्दी राइटर्स गिल्ड का तीसरा वार्षिकोत्सव


हिन्दी राइटर्स गिल्ड का तीसरा वार्षिकोत्सव
हिन्दी टाइम्स कनाडा(10 नवम्बर ) की रिपोर्ट
हिन्दी टाइम्स कनाडा(10 नवम्बर)

Wednesday, November 9, 2011

मेरे आँगन उतरी सोनपरी [चोका ]


मेरे आँगन उतरी सोनपरी
-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

मेरे आँगन
उतरी सोनपरी
लिये हाथ में
वह कनकछरी
अर्धमुद्रित
उसकी हैं पलकें
अधरों पर
मधुघट छलके
कोमल पग
हैं जादू-भरे डग
मुदित मन
हो उठा सारा जग
नत काँधों पे
बिखरी हैं अलकें
वो आई तो
आँगन भी चहका
खुशबू फैली
हर कोना महका
देखे दुनिया
बाजी थी पैंजनियाँ
ठुमक चली
ज्यों नदिया में तरी
सबकी सोनपरी ।
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मन कोंपल- सा


मन कोंपल- सा
-0-
29 April 2018
00:43

मन कोंपल- सा
पास अगन है।
सूना- सूना
घर -आँगन है।
है विनय यही
अब आ जाओ।
नेह नीर तुम
बरसा जाओ।
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30 April 2018
07:49


भोर हुई
नभ जगा
तम चूर हो गया
मजबूर हो गया।
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09 May 2018
06:17

काम्बोज
1
फूलों सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।
2
पल -पल चारों ओर से,बरसे दिनभर  तीर।
ज़हर बुझे थे दे गए, मन को मन भर पीर ।

-0-
13 May 2018
08:48

ताँका
1
तुमसे मिले
हुई हैरत मुझे
कि न था कोई
वह मैं ही था प्रिये
जो खुद से ही मिला ।
2
भेद है कहाँ
सब तुमसे कहा
तुझमें डूबा
विलीन  अहंकार
मै तुम एकाकार।
3
कोई न शब्द
जिसको मैं उचारूँ
तुम्हें पुकारूँ
संज्ञा या सर्वनाम
सबसे परे तुम।
4
रूप से परे
उम्र  का नहीं छोर
कोई न और
हो तुम्हीं  मेरे भाव
बाकी सब अभाव।
-0-
सही क्या और गलत क्या ,
वक़्त ही बतलाएगा।
साथ  आया है न कोई
साथ नहीं जाएगा।।


14 May 2018
08:53
-0-
15 May 2018
23:25

*ज़िन्दगी*

मुस्कुराती है ज़िन्दगी
बारूद के ढेर पर बैठी
बहुत मजबूर है ज़िन्दगी
किसी के सामने रो नहीं सकती
बचा जो धीरज खो नहीं सकती
हरदम कीलें चुभें तो क्या करें
मरने से पहले हम क्यों मरें
कटुताएँ राह में बैठी हुई
न जाने किस बात पर ऐंठी हुईं
पल पल नरक का द्वार खोले
वाणी में घोले हलाहल
घर द्वार पर भारी कोलाहल।


-0-
23 May 2018
22:41

हम तो सिर्फ़ खिलौना भर थे
हम तो सिर्फ़ खिलौना भर थे
इस दुनिया के मेले  में ।
तुम ना मिलते  हम खो जाते
कहीं भीड़ के रेले में।
काम्बोज 23 मई 18
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25 May 2018
11:02

हम जीवन भर इसी तरह  तरह चलते रहे।
सेज काँटों की मिली, करवट बदलते रहे
-0-
काम्बोज
09 June 2018
05:46


घना है वन
तुम नन्हे हिरना
साथ न कोई
घेरे हैं हिंस्र पशु
घर- बाहर
बचकर चलना।
बिखेर रहे
ये मुस्कान भेड़िए
जीभ निकाले
इनसे बचना है
बीच इन्हीं के
नूतन रचना है।
तुम नहीं वो,
जिसे खूनी जबड़े
ग्रास बनालें
वह भी नहीं तुम
जिसको चाहे
बना कथा उछालें।
तुम हो वह-
जिसने मरु सदा
हरे बनाए
आए भारी अंधड़
बाधाएँ लाखों
पर न घबराए।
साथ तुम्हारे
मैं भी हूँ हरदम
न घबराना
उच्च शिखर तक
तुम बढ़ते जाना।
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Monday, November 7, 2011

चुप्पी से झरे(ताँका)


चुप्पी से झरे
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
सागर नहीं
सिरजते दूरियाँ
मन ही रचे ।
सूरज न तपाए
मन आग लगाए ।
2
भिगो गई है
भावों की बदरिया
चुपके से आ
जनम -जनम की
जो सूखी चदरिया ।
3
चुप्पी से झरे
ढेरों हारसिंगार
अबकी बार
देखा जो मुड़कर-
ये थे बोल तुम्हारे ।
4
भीगे संवाद
नन्हीं -सी आत्मीयता
बनके पाखी
उड़ी छूने गगन
भावों -से भरा मन ।
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