बाबुल तुम बगिया के तरुवर
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गोपाल सिंह नेपाली |
गोपाल सिंह नेपाली
[ 12 दिसम्बर 2010,पटना के माध्यमिक शिक्षा मण्डल के हॉल में स्वर्गीय गोपाल सिंह नेपाली जी की भतीजी सविता सिंह नेपाली ने जब यह गीत गाया तो गहन सन्नाटा खिंच गया ।सभी की आँखें तरल थीं । नेपाली जी की जन्मशती पर यही गीत राष्ट्रपति भवन में भी सविता सिंह नेपाली ने गाया ।आह्वान -21 से साभार]
बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे ।
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लडियाँ रे
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सविता सिंह नेपाली : फोटो-हिमांशु |
बाबुल तुम बगिया के तरुवर …….
आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के
घर की कन्या बन का पंछी, फिरे न डाली से उड़के
बाजी हारी हुई त्रिया की
जनम -जनम सौगात पिया की
बाबुल तुम गूँगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
हमको सुध न जनम के पहले ,
अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे, गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन -बसेरा
जहाँ साँझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में
मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में
दुःख में भी हमने सुख देखा
तुमने बस कन्या मुख देखा
बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के
प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के
जनम -जनम के प्यासे नैना
चाहे नहीं कुँवारे रहना
बाबुल ढूँढ फिरो तुम हमको , हम ढूँढें बावरिया रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई
पगड़ी गिरने के दर से , दुनिया जा डोली ले आई
मन रोया , गूँजी शहनाई
नयन बहे , चुनरी पहनाई
पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लडियाँ रे ।
मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई, प्रीत नहीं
तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं
गात फूल- सा , काँटे पग में
जग के लिए जिए हम जग में
बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
माँग रची आँसू के ऊपर , घूँघट गीली आँखों पर
ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर
नेह लगा तो नैहर छूटा , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ
प्यार बताकर पीर मिली तो, नीर बनीं फूटी अँखियाँ
हुई चलाकर चाल पुरानी
नई जवानी पानी पानी
चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
देखा जो ससुराल पहुँचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी
फूलों- सा था देश हरा , पर काँटो की फुलवारी थी
कहने को सारे अपने थे
पर दिन दुपहर के सपने थे
मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के , मुश्किल था बचकर जाना
हारा दाँव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना
दुल्हन बनकर दिया जलाया
दासी बन घर बार चलाया
माँ बनकर ममता बाँटी तो , महल बनी झोंपड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया
छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया
जंजीरों में बाँधा तन को
त्याग -राग से साधा मन को
पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी
ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी
जले ह्रदय के अन्दर नारी
उस पर बाहर दुनिया सारी
मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठीं लकड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी
फिर भी समझे गए रात -दिन, हम ताड़न के अधिकारी
पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से
पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाँटें रेवड़ियाँ रे ।
उड़ जाएँ तो लौट न आएँ , ज्यों मोती की लड़ियाँ रे ।
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