पथ के साथी

Thursday, November 30, 2023

1387

 तुम कहो.. मैं लिखूँ (सॉनेट)

अनिमा दास

 

मैं जीवन लिखता हूँ तुम मृत्यु लिखो, मैं उत्तर लिखता हूँ तुम पश्चिम लिखो

संताप का अर्थ एक ही है...जीवंत हो अथवा मृत..अभिशाप भी एक ही है

स्वतः आ जाए गीत तो..हर्ष व उल्लास लिखो..अथवा अधर रक्तिम लिखो

सीमाओं में परिबद्ध आशाओं का...ध्वस्त होने की कहानी... अनेक भी हैं।

 

कोई भी पर्व तुम्हे यदि प्रेम पर्व प्रतीत हो..मेरी प्रतीक्षा ही होगी चतुर्दिश

तुम म्लान मुख्यमंडल से न देखना दर्पण..गवाक्ष पर होगी एक प्रतिछाया 

उस प्रतिछाया की भाषा में मेरे कुछ अक्षर होंगे,उनकी ध्वनि होगी अहर्निश

तुम कहोगी 'मैं गाती हूँ गीत..तुम सुनो'..मैं कहूँगा 'तुम्हारे शब्दों में है माया'

 

उस मायापाश में होगी मेरी आत्मा बद्ध..करूँगा प्रश्न मैं 'क्या यह था छल?'

तुम्हारी मौनता से अजंता की मूर्तियों में होगा कंपन..क्या तुम रहोगी मौन?

कहूँगा,'न तुम जीवन लिखो..मृत्यु नहीं है समीप..न है इसकी कामना सरल

क्या तुम तथापि रहोगी मौन?... इस जम्बूद्वीप में प्रेम से सिक्त...होगा कौन?

 

इस उत्सव को कर मुखरित..प्रणय पाश में कर बद्ध..तुम हो जाओ जीवित 

मानवरूप में दैवत्य हो किंवा दैत्य..इस काव्यकलश में रहेगी मृत्यु निश्चित।

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Sunday, November 12, 2023

1386

 

थोड़ा सा नेह

कमला निखुर्पा

 
भरा थोड़ा सा नेह

औ छलक उठा 

मन दीपक।

दिप-दिप जल उठी

सोई थी जो बाती।

लगन की लौ 

लहककर जल उठी 

लगने लगी 

हवा से होड़ 

जलने की 

बुझने की।

हवा चलती रही

दिया जलता रहा

नन्ही एक हथेली  

 करती रही ओट 

भरती रही नेह 

मन दीपक में।

Monday, November 6, 2023

1385

 सुकून

स्वाति शर्मा

 


सुकून की खातिर

घर से दूर आ गए

अपने छोड़े,

रातों के सपने छोड़े

जीवन में तन्हाई

गमों में गहराई,

ना खाने का होश

ना पीने की सुध

बस चलते जा रहे

पाई- पाई जोड़ रहे

दोस्ती टूटी

रिश्ते छूटे

बस इक सुकून की खातिर

 

सबसे दूर आ गए

सुकून की खातिर

घर से दूर आ गए।

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Wednesday, November 1, 2023

1383

 

जय भारती

 डॉ. सुरंगमा यादव

 

देश वही जग का सरताज है,

हिमगिरि का पहने जो ताज है

            जय भारती, जय- जय भारती

             मिलकर उतारेंगे  आरती

              जय भारती,जय- जय भारती

 वेदों के गूँजें यहाँ मंत्र हैं

 रामायण- गीता- से ग्रंथ हैं

 ऋषियों ने दिये गूढ़मंत्र हैं

 यहीं हैं अपाला और गार्गी

                जय भारती, जय- जय भारती            

बंसी बजाई यहाँ श्याम ने

मर्यादा सिखलाई राम ने

 पावन किया चारों धाम ने

 प्रयाग-धार भव से उतारती

                 जय भारती, जय-जय भारती

 चरणों को सागर पखारता

 दिग्दिगंत ओम ही उचारता

 स्वर्ग से है इसकी समानता

 ऋतुएँ भी रूप आ निखारतीं

                 जय भारती, जय-जय भारती

 नदियों का माँ जैसा मान है

 अतिथि यहाँ देवता समान है

 वीरों ने वार दिये प्राण हैं

 जब-जब वसुंधरा पुकारती

                  जय भारती, जय- जय भारती।

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