पथ के साथी

Thursday, March 8, 2018

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मेरे हिसाब से महिला दिवस हमारे मन में ,आत्मा में ,खून में बसा होना चाहिए सम्मान और प्यार के रूप  में। प्यार भी करें तो उसमें सम्मान की खुशबू भरी हो,आदर करें तो उनमें वही भाव भरा हो ,जो ईश्वर के लिए होता है,मित्र रूप में माने तो अटूट विश्वास हो। जो भी माने ,वह नारी के होंठों पर मुस्कुराहट लाए। किसी नारी के मन में दुःख या विषाद हो तो, हम उसे दूर कर सकें। कभी नारी के सम्मान पर आँच आए तो हम उसके लिए अपने प्राण दे सकें। यही मेरे लिए प्राणों की ,जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता है कि हम अवसर आने पर उसके लिए मिट जाएँ,जिसने हमें दो पल भी प्यार , सम्मान,ममता से छुआ हो।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


स्त्री-सत्या शर्मा

कल मेरी कविता से निकल
कहा स्त्री ने
अहा ! कितना सुखद
कितनी तृप्ति
आओ तोड़ दें बंदिशें
हो जाएं मुक्त
गायें आजादी के मधुर गीत

और नाच उठी स्त्री
उन्मुक्त बहती नदी में
धोये अपने बाल
बादलों का लगाया काजल
टांक लिया जुड़े में
चाँद सितारों को
तेजस्वी स्त्री
दमकने लगी अपने
व्यक्तित्व और सौंदर्य की
आभा से

कुछ गीत गुनगुनाए
मेरी  कानों में
आगोश में लिया और
डबडबाई आँखों से देखा मुझे
स्नेह भरे हाँथ रखे मेरे सर पे
और पुनः समा गई
पन्नों में...

ताकि रच सके एक नया इतिहास
स्त्री की निखरते -दमकते
व्यक्तित्व का....
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