पथ के साथी

Monday, September 2, 2019

926


प्रीति अग्रवाल अनुजा

1-आवारा मन

चित्र; प्रीति अग्रवाल
जाने कौन से
गलियारों मे,
घूमता,
फिर रहा है।

कहो तो उस से
जो माने! ये तो 
अपनी ही,
ज़िद पे अड़ा है।

होगा कुछ भी नही,
यूँ ही,
खाक छानकर
थका लौटेगा,

क्या हुआ?
क्यों हुआ?
ऐसा होता तो??
वैसा न होता तो??

इसी गर्दिश में,
धक्के खाकर,
फिर चुपचाप
सिमट कर बैठेगा।

कहकर देखूं
शायद मान ले-
मन, अब तू बच्चा नहीं
बड़ा हो चला है,”

"जो है, आज और 
केवल आज है,
काल की रट ने
सिर्फ ,
और सिर्फ छला है"!!!
-0-
2- चोरी

मुक़द्दमा, अदालत,
जज और गवाही।
चित्र; प्रीति अग्रवाल
मुद्दा-
मीलॉर्ड, इस शख़्स ने,
मेरी हँसी चुराई!!
पलटवार-
मरते थे हज़ारों
जिस हँसी पे जनाब,
कत्ल हो न दोबारा
सो चुराई!!
क्या ख़ता???
तुकबंदी-
सोलह आने!
कार्यावाही सम्पन्न।
किस्सा हुआ ख़ारिज
सब कुछ सही!!??
-0-