पथ के साथी

Saturday, July 6, 2013

जाने क्या हुआ !


   पुष्पा मेहरा 

  यह क्या हुआ !
  स्तब्ध दिशाएँ हो गईं
  सो गए हैं शब्द
  मौन वाणी हो  गयी ।

  धुंध है, खामोशी है,
  बेचैनी है फ़िज़ाओं में
  आँखें अँधेरा चीर कर
  रोशनी खोजती हैं ।

  अश्रु ढल- ढल 
  नदी बन गए हैं
  पहाड़ी नदी से  
  दर्द अपना कह रहे हैं।

  आकाश भीगा-
  ठहरा हुआ है
  द्रवित किरणें  सूर्य की
  अर्पण- भाव- रंजित हैं।

  चाँद खामोश,
  चाँदनी -
  अश्रु- जल ले
  उतरी हुई है ।

  झिलमिलाहट सितारों की-
  सहमी हुई है,
  हवाओं की सनसनाहट में-
  अकुलाहट  भरी है ।

  ख़ामोशियाँ -
  दर्द की चादर में लिपटीं,
  निर्वस्त्र- पर्वत- शिखर-
  अंग- अंग शिथिल हैं

  शोर है, आवाज़ है,
  सन्नाटा घिरा है
  उसकी लम्बी ज़िन्दगी
  घर-घर जा बसी है।

  बादलों को-
  आज जाने क्या हुआ !
  विक्षिप्त से उत्पाती बने
  जो डोलते हैं।
 "देव-बन्धु! यह क्या कर गए

 विक्षिप्त-उत्पाती क्यों हो गए।’’