पथ के साथी

Sunday, October 11, 2020

1024

 

1- शीला राणा

1

तिनका-तिनका जोड़कर, बना नेह का नीड़।


सुख जो मिले सहेज ले
, भुला मिली जो पीड़।।

2

बंजारों-सी ज़िंदगी, सेठों जैसे ठाठ।

संग हो जिसके देवता, खुलते सुख के पाट।।

3

रिश्तों की इस हाट में, हम तो बारह-बाट।

धन से हारी सादगी, खूँ से जीते प्लॉट ।।

4

रंखून का धुल गया, हँसी हवस मनहूस।

टूट गए माँ-बाप फि,  सच को कर महसूस ।।

5

शील कहे क्यों चाशनी, रहा बात में घोल।

तेरी करतूतें सभी, खोल रही हैं पोल।।

6

आखर जिनके खोखले, मन में उनके खोट।

जाना उनके पास ना, देंगे घातक चोट ।।

7

जाँ छिड़की जिन पर सदा, किया टूटकर प्यार ।

हाथों में ख़ंजर लिये, करें पीठ पर वार ।।

8

सतयुग से कलयुग तलक, ज़ारी है दस्तूर ।

बाज़ी पलटें मंथरा, बेबस हैं मंसूर ।।

7

ठग ने चुपके से ठगा, चिल्ला-चिल्ला चोर ।

उड़ा लिया ख़ुद माल सब, झूठा करके शोर ।

8

बेफ़रमानी हँस रही, वालिद हैं मज़बूर ।

हया बेचके खा गए, थे आँखों के नूर ।।

-0-जयपुर

 

-0-

2-मुकेश

बनावटी लहज़े में लिपटी हुई

मीठी सी एक तकरार हो तुम

हफ़्ते भर से व्यस्त ज़िन्दगी का

फ़ुर्सत वाला रविवार हो तुम

 

-0-

3- मनोज मिश्र

 

 

1-कविता- शिवोम् 

 

जब शाम का अँधेरा गहराया

जब शोर का सैलाब रुका

जब खुद से मैं सम्मुख हुआ

डरावने सायों ने घेरा डाला

घबराया, सहमा, फिर समझा...

 

अब तक मैं,

अपने आप से छुपता- छुपाता

देखकर भी आँखें मूँदे रहा

मिथ्या कल्पना में जीता रहा....

 

बस, उनको सँवार लूँ सोचा

साया बन मेरे साथ जो रहा,

मुझ पर हक नहीं उन सबका

मै भी शिव हूँ, जो न समझा....

सम्मान सबका, पहले अपना.....

 

फिर तारों का टिमटिमाना 

सब ठीक अब, याद दिलाना।

-0-

2- रैन बसेरा

 

हुई साँझ

आज इस पेड़ से उमड़ा कलरव

दिनभर का बोझ उड़ेल, सो ग पंछी

भोर विदा ले उड़ जाएँगे

कल किस डाल पर ठहरेंगे 

यह कल ही कह पाएँगे !

-0-