मनोज कुमार श्रीवास्तव ‘मनु’
जो प्राणदायिनी जीवनरेखा है
जो बहती है,
हिमालय से गंगासागर तक
जो नदी नहीं
,सभ्यता है हिंदुस्तान की
जो पतितपावनी है जहान की
जो जलमात्र नहीं
,अमृत है
माँ है
,जो भारत महान् की
नाम है गंगा उसका
कर्त्तव्य हो हमारा सर्वोपरि
यही दृढ़ संकल्प आधार हो
अस्तित्व बचाना उसका
हमारा कार्य है;
अगर जीवित रहना है
तो गंगा का निर्मल रहना
अपरिहार्य है ।
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