पथ के साथी

Wednesday, October 3, 2018

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डॉ.पूर्णिमा राय
 1
बोएँ शिक्षा -बीज सब ,पाएँगे फल चार।
उज्ज्वल मानवता बने,सपने हों साकार।।
2
साक्षर बनके कर रहे,भारत नाम महान।।
खान गुणों की है बने, ज्ञानी विद्वान।।
3
पावन भावों से भरी, ये रेशम की डोर।
भाई के बिन बहन की, कैसे हो नव भोर।।
4
रंग-बिरंगी ही चमक ,फैली चारों ओर।
बहन-प्रेम के सामने,चलता किसका जोर।।
5
सावन की बरसात में, रहना मत अब दूर।
सासों में तुम हो बसे ,तुम्हीं आँख के नूर।।
6
पुरवैया मोहक चले, मेरे मनमीत।
ने डोर ही बाँधती ,तेरी-मेरी प्रीत।।
7
प्रीत महक से खिल उठे,प्रतिपल  मेरी  साँस।
तृप्ति मिले जब रूह को,रहे कोई प्यास।।
8
नतमस्तक होकर मिले,मात-पिता का प्यार।
दिल दुखाना भूल से ,करना सद्व्यवहार।।
9
जो आशा मन में रहे,मिल जा मन मीत।
कानों में रस घोलता,कोयल- सा संगीत।।
10
धीरे-धीरे पग बढ़े, अपनी मंजिल ओर।
मिले नहीं ठहराव से,खुशी भरी नव भोर।।    
-0-  डॉ.पूर्णिमा राय,
इमेल-drpurnima01.dpr@gmail.com
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