ख़ुशनसीब
नैनीताल: अमित अग्रवाल
( सितम्बर 2012)
1
ये धुंध नहीं
बादल नहीं
बारिश नहीं
परमात्मा बरसता
है..
लगाओ टकटकी
आसमान पर
खोल कर बंद
दरवाज़े
अपने दिल के
और तुम भर जाओगे,
जाओगे शोर-ओ-गुल
में
नज़रंदाज़ कर इसे
बाज़ार-ओ-दूकान
के,
और तुम ख़ाली रह
जाओगे.
2
मेघ बरसता है
छतरियाँ रंगीन
दिल भी बरसता है
पर रंग कहाँ?
3
बारिश बहुत
प्यारी
ख़ामोश बरस गई
न टप-टप
न झर-झर
न शोर
न आडम्बर!
4
धरती की झील
आसमान पर बादल
मिलने को तरसते
इस हसरत को बस
सपना ही समझते.
बूँदें बरसतीं
अनवरत
कितनी सहजता से
दोनों को मिलातीं
इक सपने को
हक़ीक़त बनातीं!
5
मंदिरों के घंटे,
अजान की आवाज़
ख़ामोश खड़े चर्च
गुरुद्वारे का
प्रसाद..
कितने ख़ुशनसीब
हो तुम
नैनीताल
ख़ूबसूरती के
अलावा भी
कितना कुछ है
तुम्हारे पास!
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