रमेशराज की रचनाएँ
1-जनक
छन्द की तेवरी
1
क्या घबराना धूप से
ताप-भरे लू-रूप से, आगे सुख की
झील है।
दुःख ने घेरा, क्यों डरें
घना अँधेरा, क्यों डरें, हिम्मत है-कंदील है।
भले पाँव में घाव हैं
कदम नहीं रुक पायँगे, क्या कर लेगी
कील है।
खुशियों के अध्याय को
तरसेगा सच न्याय को, ये छल की
तहसील है।
है बस्ती इन्सान की
हर कोई लेकिन यहाँ बाज गिद्ध वक चील है।
पीड़ा का उपचार कर
‘भाग लिखें की’ आज सुन, चलनी
नहीं दलील है।
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2-*गीतिका
छंद में ग़ज़ल*
सादगी पै, दिल्लगी पै, इक कली पै, मर मिटे
दोस्ती की रोशनी पै, हम खुशी पै,
मर मिटे।
फूल-सा अनुकूल मौसम और हमदम ला इधर
प्यार की इकरार की हम चाँदनी पै मर मिटे।
हम मिलेंगे तो खिलेंगे प्यार के मौसम नये
हम वफा की, हर अदा की, वन्दगी पै मर मिटे।
रूप की इस धूप को जो पी रहे तो जी रहे
नूर के दस्तूर वाली हम हँसी पै मर मिटे।
फिर उसी अंदाज में तू ‘राज’ को आवाज दे
नैन की, मधु बैन की हम बाँसुरी पै मर मिटे।
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3-
हाइकु विन्यास में ग़ज़ल
भूल चुके हैं / प्रियतम को जब / बेचैनी कैसी ?
माना सुख-सा / हर ग़म को जब / बेचैनी कैसी ?
उसके लब की / इक जलधर की / रंगीं रातों की
प्यास नहीं है / अब हमको जब / बेचैनी कैसी ?
आज प्रीति का / भोग न रुचिकर / प्राणों को लागे
माना नीरस / मधुसम को जब / बेचैनी कैसी ?
बेगानों हित / सहज प्रफुल्लित / रातों-बातों में
हमने देखा / हमदम को जब / बेचैनी कैसी ?
दूर-दूर हैं / हम उपवन की / हूकों-कूकों से
आज न चाहें / छम-छम को जब / बेचैनी कैसी ?
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3-
तेवरी
तभी बिखेरे बाती नूर, ये दस्तूर
मोम सरीखा गल प्यारे ।
दुःखदर्दों से किसकी मुक्ति? कोई
युक्ति??
क्या होना है कल प्यारे?
अब तू जिस संकट के बीच, भारी कीच
थोड़ा-बहुत निकल प्यारे ।
रैंग, हुआ जो पाँव विहीन, बनकर दीन
सर्प सरीखा चल प्यारे ।
जग में उल्टे-सीधे काम,
ओ बदनाम
क्यों करता है छल प्यारे ।
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4- नम
हैं बहुत वतन की आँखें
हिन्दू-मुस्लिम बनना छोड़ो
बन जाओ तुम हिन्दुस्तानी,
अपना भारत महाकाव्य है
टुकड़ो में मत लिखो कहानी।
क्यों होते हो सिख-ईसाई
साथ जियो बन भाई-भाई,
धर्म नहीं वह जिसने सब पर
हिंसा के बल धाक जमाई।
रक्तपात यह हल देता है
बस हिंसक जंगल देता है,
जातिवाद का मीठा सपना
मानवता को छल देता है।
जब मजहब उन्मादी होता
बस लाशों का आदी होता,
चीत्कार ही दे सकता है
अमन देश का ले सकता है।
अतः धर्म का मतलब जानो
मानवता सर्वोपरि मानो,
नम हैं बहुत वतन की आंखें
इसके मन का दुःख पहचानो।
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