पथ के साथी

Tuesday, December 2, 2008

रूबाइयाँ

:रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
25अपना तो दिल है मस्ताना इकले चलते जाएँगे ।
जलने वाले खूब जलें हम हँसते हैं हम गाएँगे ॥
दुनिया बस्ती बनी ठगों की हम किसको अपना कह दें।
जिसका मन होगा सच्चा हम उसको गले लगाएँगे ॥
26
जब से टूक-टूक हो बिखर गया हूँ ।
तब से और भी अधिक निखर गया हूँ।
मेरा ये पश्त मुक़द्दर रहा साथ मेरे
उम्मीदें लेकर मैं जिधर गया हूँ॥
27
बचाके दामन तेरी गली से गुज़र गया हूँ ।
यादों का साया रहा साथ मैं जिधर गया हूँ ॥
देना था सिला क्या चाँद यही मेरी वफ़ा का ।
तेरे दिल से अब न्शे की तरह उतर गया हूँ ॥
28
इस दिल पे तेरे क़दमों के निशान बाक़ी हैं।
महकते हुए ग़ेसुओं की पहचान बाक़ी है॥
हमेंचले गए छोड़कर तुम तो सरे-राह ।
फिर भी तुझे पा लेने के अरमान बाक़ी हैं ॥

29
रहती हैं हर वक़्त नशे में चूर आँखें।
कलेजे तक उतर जाती ये बेक़सूर आँखें ॥
खैर माँगो ख़ुदा से अपनी ज़िन्दगी की ।
हसीन क़यामत हैं ये पुरनूर आँखें ॥
30
डूबते हुए को किनारा ही बहुत है ।
अँधेरी रात में तारा ही बहुत है ॥
एक क्या हज़ार जानें लुटा दें तुझपे हम
कजरारी आँखों का इशारा ही बहुत है ॥

31
इन स्याह ग़ेसुओं में पनाह दे दो।
दिल तक पहुँचने की राह दे दो ॥
ताउम्र रहे दिल में तेरी हसरत ।
नादान दिल को वह ग़ुनाह दे दो॥
32
लिख-लिखकर मेरा नाम मिटाने वाले ।
तन्हाई में छुपकर आँसू बहाने वाले ॥
मेरी रुह की बेकली भला तू क्या जाने ।
यादों के निशान नहीं कभी जाने वाले ॥