ज्योत्स्ना प्रदीप
![]() |
पेण्टिंग:ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री विमल जी |
प्रेम में डूबी मीरा
का,दर्द मतवाला दे दो ।
सुधा समझ जिसे पी
लिया,विष का वो प्याला दे दो ।
बचपन की हल्की धूप में ,
लिये कान्हा संग फेरे,
पावन सुख की आस लिये,
मन से हट गए अँधेरे,
उसी महाज्योति का बस थोड़ा -सा उजाला दे दो।
उसी महाज्योति का बस थोड़ा -सा उजाला दे दो।
प्रेम में
डूबी मीरा का,दर्द मतवाला दे दो ।
मीरा भटकी यहाँ -वहाँ,
मीरा भटकी यहाँ -वहाँ,
जाने छिपा कहाँ प्रियतम?
चित्तौड़,मेवाड़ के मोड़ ,
द्वारका या फिर वृन्दावन !!
उन्ही भटकते पाँवों का, सिर्फ़ एक छाला दे दो ।
प्रेम में डूबी मीरा का,दर्द मतवाला दे दो ।
मुग्धा के नयनों में प्रीत का
भरा हुआ था सागर,
पुजारिन के नेह ने ,
विषधर मे देखा वंशीधर ।
उस जलधि की लहरों का बस एक उछाला दे दो।
प्रेम में डूबी मीरा
का,दर्द मतवाला दे दो ।
मीरा को मिला मोहन ,
अपने मोह का क्या होगा?
महामिलन की आस लिये,
इस विछोह का क्या होगा ?
मन में लय ,तानें नही, मुझे वंशीवाला दे दो
।
प्रेम में डूबी मीरा
का,दर्द मतवाला दे दो ।