पथ के साथी

Sunday, January 22, 2023

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 पिता नहीं उफ़ करता है

पीयूष श्रीवास्तव

 

सुबह सवेरे घर से मेरे, एक कर्मठ राही निकलता है

दिन भर धूप से लेता लोहा, सूरज के संग जलता है


होती हो बादल की गर्जन
, या घिर जाए भीषण बरसात,

उस राही की आँखों में भाई, इन सब की नहीं कोई बिसात

हर मुश्किल हर कठिनाई से, लड़ने की हिम्मत रखता है

खून पसीना इक हो जाए पर, पिता नहीं उफ़ करता है

 

नन्हे- नन्हे बच्चों की अपने, हर इच्छापूर्ति करता है

माँ की साड़ी, दादी की ऐनक, हर कमी को हँसके भरता है

हो पूरे घर की जिम्मेदारी, या रिश्तों की दुनियादारी


परिवार की राह में जो आ
ए, उस पर्वत पर भी ये भारी

जूता उसका काटे चाहे, मोजों से अँगूठा निकलता है

कुर्ते में कितने छेद सही पर, पिता नहीं उफ़ करता है

 

कंधों पर अपने बैठा कर, सारा ये जगत दिखलाते हैं

जितना ख़ुद भी न सीख सके, उसके आगे सिखलाते हैं

छाती नकी तब फूलती है, बच्चे जब उन्नति करते हैं

काँधे से उतरकर नीचे जब, जीवन में खूब निखरते हैं

अपने सामर्थ्य से आगे बढ़, उम्मीदों की खरीदी करता है

डगर में हों कितने भी शूल पर, पिता नहीं उफ़ करता है

 

क्यों नहीं कभी ये कहते हैं, अपने मन की सारी बातें

क्यों नहीं कभी बतलाते हैं, कितना ये हम सबको चाहें

माँ की आँखें नम देखी हैं, पर इनकी आँखें बस रूखी हैं

कई बार यही इक छाप बनी, की इनकी भावना सूखी हैं

कोमल-सा हृदय होते भी हुए, हर पल चट्टान-सा रहता है

हो जाए मन कितना घायल पर, पिता नहीं उफ़ करता है।

 

आ जाओ मिलकर आज इन्हें, हम गले लगा इक काम करें

चूम लें इनके हाथों को और छूकर पैर प्रणाम करें

जब सीने से इन्हें लगाओगे, थोड़ा-सा ये चकराएँगे

थोड़े से होंगे भाव विह्वल, थोड़ी सख्ती दिखलाएँगे

फिर चोरी-चोरी आँखों से, एक बूँद ओस की हरता है

भावुक मन की आँखें दर्पण पर, पिता नहीं उफ़ करता है

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76 Chelsea Crescent, Bradford, L3Z0J7

(कनाडा)