1-बात भला क्या करनी
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
छीन रहे हैं जो बंदूक़ें , घर के पहरेदारों से
बात भला क्या करनी हमको इन कपटी ,ग़द्दारों से ।
प्रेम-मुहब्बत से नफ़रत की
खाई पाट लेना अच्छा
लेकिन मारें ,फिर जो पत्थर
हाथ काट लेना अच्छा
आती है आवाज़ वतन के
ज़र्रों से , मीनारों से .....बात
भला
सहना,सहना ,सह ना कह दो
सहने की भी सीमा है
हुई शहादत , अरे मनीषी !
स्वर क्यों धीमा--धीमा है
चमन गुलों से हुआ है घायल
बचते-बचते ख़ारों से ...बात भला ..
घर में खाते ,गुर्राते हैं
जब-तब हुंकारें भरते
आतंकी हरकत पर चुप हैं
ख़ौफ़ है क्या, क्यों कर डरते
उन्मादों का ज़हर बाँटते
खुद दिखते बीमारों से .. भला
बात ..
रंगे सियारों ! सबने
तुमको
ठीक-ठीक
पहचान लिया
हटा नकाबें ,छद्म तुम्हारी ,
हर मंशा को जान लिया
छीनों सारे हक़ भारत में
इन झूठे मक्कारों से ...बात
भला क्या ..
-0- 29.4.17
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2-क्षणिकाएँ
ज्योत्स्ना प्रदीप
1- कसौटी
ये
रात की
कैसी
कसौटी है?
एक
तो बिन चाँद के
... उस
पर
आँसुओं
में
नहाकर
लौटी है!!!
2 -बदलाव
वो
दरख़्त
धीरे - धीरे
ठूँठ
में बदल गया
शायद
उसे भी कोई छल गया!!
3- अहसान
ये
अहसान
क्या कम है?
आज भी ....
उसकी बाज़ू
मेरे
ही आँसुओं से
नम है!!
4- शर्म
विषैले सर्प
शर्म से
कम
नज़र आने लगे
देखकर
उन
लोगो को
जो
खुद ही
विष
उगाने लगे
5- दरारें
सुनाई
ही नहीं
दिखाई
भी देता है
उन दीवारों को
देखा है कभी
उनमें
दुःख से पड़ी दरारों को?
6- आकार
एक
पत्थर भी
सह
लेता है
नुकीली
छैनी का प्रहार
वो
चुप है
शायद
चाहता है
एक
नया आकार ।
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