पथ के साथी

Tuesday, May 2, 2017

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1-बात भला क्या करनी 

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

छीन रहे हैं जो बंदूक़ें , घर के पहरेदारों से
 बात भला क्या करनी हमको इन कपटी ,ग़द्दारों से ।

प्रेम-मुहब्बत से नफ़रत की
खाई पाट लेना अच्छा
लेकिन मारें ,फिर जो पत्थर
हाथ काट लेना अच्छा
आती है आवाज़ वतन के
ज़र्रों से , मीनारों से .....बात भला

सहना,सहना ,सह ना कह दो
सहने की भी सीमा है
हुई शहादत , अरे मनीषी !
स्वर क्यों धीमा--धीमा है
चमन गुलों से हुआ है घायल
बचते-बचते ख़ारों से ...बात भला ..

घर में खाते ,गुर्राते हैं
जब-तब हुंकारें भरते
आतंकी हरकत पर चुप हैं
ख़ौफ़ है क्या, क्यों कर डरते
उन्मादों का ज़हर बाँटते
खुद दिखते बीमारों से .. भला बात ..

रंगे सियारों ! सबने तुमको
ठीक-ठीक पहचान लिया
हटा नकाबें ,छद्म तुम्हारी ,
हर मंशा को जान लिया
छीनों सारे हक़ भारत में
इन झूठे मक्कारों से ...बात भला क्या ..
-0-     29.4.17

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2-क्षणिकाएँ
ज्योत्स्ना  प्रदीप 

1- कसौटी 

 ये रात की
 कैसी कसौटी है?
 एक तो बिन चाँद के
... उस पर
 आँसुओं में
 नहाकर लौटी है!!! 

2 -बदलाव

 वो दरख़्त 
धीरे - धीरे
 ठूँठ में बदल गया 
शायद 
उसे भी कोई छल गया!!

 3- अहसान 

 ये अहसान 
क्या कम है
आज भी .... 
उसकी बाज़ू
 मेरे ही आँसुओं से 
नम है!! 

4- शर्म

विषैले सर्प 
शर्म से
 कम नज़र आने लगे
 देखकर
 उन लोगो को
 जो 
खुद ही
 विष उगाने लगे

5- दरारें 

 सुनाई ही नहीं
 दिखाई भी देता है 
उन दीवारों को
देखा है कभी 
उनमें
दुःख से पड़ी दरारों को?

6- आकार

 एक पत्थर भी
 सह लेता है
 नुकीली छैनी का प्रहार
 वो चुप है
 शायद चाहता है
 एक नया आकार ।

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