पथ के साथी

Saturday, November 25, 2017

779


धर लिये थे गोद में
मेहँदी रचे दो पाँव
नीर नयनों से बहा
और मन पावन  हो गया।
धुल गए
अवसाद सारे
धूल जीवन की धुली,
खिड़कियाँ बरसों से
बन्द थीं,
वे अचानक जब खुलीं,
परस दो पल जो मिला
सहरा में सावन हो गया ।
अधर -पुट ने छू लिया
चाँद जैसे भाल को,
जीत लेती साधना
जैसे घुमड़ते काल को;
एक पल मुझको मिला
जो,मन-भावन हो गया।
चमक बिछुए की मिली
कि भाव दर्पण था सजा ,
इस एकाकी हृदय में
गीत गन्धर्व का बजा ,
इस जनम में तुम मिले
मन वृन्दावन हो गया।

-0-[चित्र गूगल से साभार]