पथ के साथी

Tuesday, April 27, 2021

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 1-निकलेगा हल

शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'

 

निकलेगा हल,

हल निकलेगा,

आज नहीं तो कल।

 

फोटो सौजन्य    कुँवर दिनेश

जहाँ नहीं अंकुर फूटे हों
,

गीला रखना तल,

नहीं लगा हो, वहाँ लगाना,

पानी का भी नल,

यह भी संभव, ले गंगा को,

आ भी जाएँ 'चल’ 

 

हर दिन को, अँगुरी पर गिन-गिन,

जीवित रखना पल,

आया है जो आज बुरा दिन,

वह जाएगा टल,

साथ निभाएगा हर सपना,

भागेगा हर छल

 

जिस जीवन में जगा भरोसा,

झील वही है‘डल’

सच्ची बातें भी आँखों को

अक्सर जातीं खल,

मानव है तू, मानव ही रह,

मत ओला सा गल 

 

जीवन भर डालो हर जड़ में,

दृढ़तापूर्वक जल,

इस प्रयास का, एक नया सा,

मिल सकता है फल,

चलो! खिलाएँ हम मरुथल में,

साँसों का शतदल 

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2-अपराजेय

संजय भारद्धाज

 

"मैं तुम्हें दिखता हूँ?"

उसने पूछा...,

"नहीं..."

मैंने कहा...,

"फिर तुम

मुझसे लड़ोगे कैसे..?"

"...मेरा हौसला

तुम्हें दिखता है?"

मैंने पूछा...,

"नहीं..."

" फिर तुम

मुझसे बचोगे कैसे..?"

ठोंकता है ताल मनोबल,

संकट भागने को

विवश होता है,

शत्रु नहीं

शत्रु का भय

अदृश्य होता है!

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9890122603
writersanjay@gmail.com

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3- काँटों भरी डगर है

कृष्णा वर्मा 

काँटों भरी डगर है

शामत भरा सफ़र है

मेघ घनेरे छाए हैं 

अँधियारों के साए हैं 

उम्मीदों के दीप जला 

पल में दिल की थकन मिटा 

बदलेंगी विक्षिप्त हवाएँ 

जल्दी होंगी फलित दुआएँ 

कब तक काल करेगा तांडव 

कब तक मौन रहेंगे माधव 

निश्चित ही गांडीव उठेगा

जल्द मिटेगी दुख की रेखा

बस विश्वास बनाए रखना 

सुख की आस लगाए रखना 

बुझ न पाए दीप आस का

प्रतिपल ओट लगाए रखना 

जल्द टेंगे काले बादल 

होंगी ख़ुशियों की बरसातें 

फिर से जीवन हरियाएगा 

ज्ज्वल दिन दमकेंगी रातें 

फिर से गले मिलेंगे अपने 

स्वर्णिम होंगे सारे सपने 

काल का कब्ज़ा है साँसों पर 

बस इतनी सी बात समझ ले 

तन्हा रह एहतियात बरत ले। 

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