पथ के साथी

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Friday, June 27, 2025

1470

 

गाँव  में क्या रखा है 

सुरभि डागर 

 


 

 गाँव  में रखा ही क्या है 

छुपा रखा है एक माना 

लोग कहते हैं गाँव  में क्या रखा है 

गाँव  में मेरे बचपन की सुनहरी यादें 

गर्मी में तारों की छाँव में लगी मच्छरदानी।

बिस्तर पर दादी विजना डुलाती

साथ में सुनाती  कहानी ।

सुनते-सुनते  कहानी न जाने 

मैं कब सो जाती।

रूठने पर माँ ,दादी मुझे मनाती

अपने हाथों से निवाला खिलाती

उस वक्त को तलाशता मेरा मन

लोग कहते हैं पुराने वक्त में क्या रखा है

गाँव  की मिट्टी में बसा है मेरा बचपन

लोग कहते हैं गाँव  में क्या रखा है 

घर से राह में  झाँकते  झरोखे ,

कहीं नीम की ठंडी हवा के थे झोंके

चौपाल में होते थे दादा,ताऊ,चाचा

घर के मुखिया और काका।

कुओं से वहता ,वरहो में पानी

पेड़ों पर आम से भरी होती डाली,

खेतों की छटा होती थी निराली

पगडंडियों पर घूमती थी घसियारी

पुराने बक्सों को तलाशती मेरीआँखे,

उन पुराने बक्सों में बन्द है एक माना।

लोग कहते हैं गाँव  में क्या रखा है 

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Thursday, September 5, 2024

1430

 

समय शिक्षक/ सुरभि डागर 

 


 

रिक्त पात्र हो तब भी 

शिक्षा ही भरपूर बनाती है

कठिन राह हो जीवन में 

गुरु की याद दिलाती है 

हैं शिक्षक अनेकों जग में

वक्त से बड़ा न शिक्षक कोई।

राम चले थे जब वन को 

गुरु शिष्ठ ने ज्ञान दिया

समय कठिन था  फिर भी

गुरु के शब्दों को मान दिया 

मर्यादा पुरुषोत्तम बने राम 

शबरी, अहल्या, केवट तक को 

उसी राम ने तार दिया ।

जिसकी धनुर्विद्या के आगे

रावण भी था  हार गया।

 गुरु द्रोण से लेकर  शिक्षा

अर्जुन ने  राष्ट्र-उद्घार किया।

बने गुरु जब सुदर्शनधारी

पार्थ को गीता - सार दिया।।

माँ जीजाबाई बनी गुरु तो

शिवा कोर्म आधार दिया

 

 

Saturday, August 17, 2024

1427

1-सावन में फोन/ सुरभि डागर 

 


साँवली बदली छम- छम 

सावन में बरस उठी 

कहीं आती ताज़े घेवर की

 मीठी सुगन्ध से महकते

गलियारे।

तभी बज उठी मेरे फोन की घंटी-

चली आओ लाडो,

झूमते सावन में 

आ गई सब सखियाँ तुम्हारी,

है मेरा आँगन सूना सावन में 

तुम्हारे बिन लाड़ली 

खनकाओ मेरे आँगन में

हरे काँच की चूड़ियाँ

मेहंदी की सुगंध से महका दो 

बाबुल की बगिया।

पील में खाली पड़े हैं 

रेशम डोर के झूले 

ताक रहे राह तुम्हारे आने की

पंचरंगी  बूटेदार साड़ी पहन ले

आओ सावन को मेरे भवन में 

दादी गा रही हैं सावन के मधुर गीत 

बेटी झूलन को चली जाओ 

हिंडोला झालर का ,चंदन की पटली धरी 

बटी धरी है रेशम डोर ,

हिंडोला झालर का।

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2-अर्चना राय


 

1-बेटी

 

बधाई हो! 

आपके घर  बेटी आई है। 

सुनकर दिल कुछ

दरक- सा गया

मन के गहरे बैठी पैठ

 कि बेटे संपत्ति और.. 

 बेटियाँ जिम्मेदारी

होती हैं। 

सोच मन कसक- सा उठा

 

 मान उसे अपनी जिम्मेदारी 

 बस निभाता रहा... 

छूना चाहती थी आसमान

और मैं उसे धरती पर 

बाँधने में लगा रहा। 

पर तोड़ हर जंजीर

उसे तो उड़ना था। 

उड़ी और ऐसे उड़ी कि

आसमान को ही उसने

 अपनी धरती बना लिया

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2 - स्त्री

 

तुम्हारे पास सपने थे

तुम्हारे पास इच्छाएँ थीं

उम्मीदें थीं

हौसला था

साहस था

पता नहीं कैसे तुमने

किसी और का 

अनुसरण स्वीकारा होगा

Thursday, June 20, 2024

1423

 तहजी़ब सुरभि डागर

 


नुमाइश है हजारों पर ना

नुमाइश जिस्म  की ना कीजि

पुरखों ने जो दी सौगात

उस इज्जत की लिहाज़ तो कीजि

हजारों सालों में कमाई दौलत

यूँ ना सरेआम तो कीजि

कहीं बहके कदम,थाम लो

जाम का प्याला अगर हाथ हो तो

याद अपने बाप की पगड़ी को कीजि

बढ़ती नापाक हरकतें

आजादी के नाम खुद को

बर्बाद ना कीजि

पैदा हुई लक्ष्मी बाई, जीजाबाई  हाँ

तहजीब अपने मुल्क की देख लीजिए।

नुमाश है हजारों पर ना

नुमश अपनी ना  कीजिए।

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2-तुम्हारा प्यार रचती हूँ

प्रणति ठाकुर


मन में मैं तुमको हजारों बार रचती हूँ
 

तुम्हारा प्यार रचती हूँ..

जब क्षितिज के छोर से, रश्मियों के डोर से,

भोर मदमाती है आती तितलियों के ताल पर,

हर कली के भाल पर,

स्नेह का कुमकुम लगाती

ज़िन्दगी की आस बनकर,

प्रेम का विश्वास बनकर

जब रवि लिखता है पाती

तब प्रिये मैं भाव बनकर,

भूमि के कण में बिखरकर,

प्रेम का अनुपम अतुल आधार रचती हूँ....

तुम्हारा प्यार रचती हूँ....

 

इन्द्रधनुषी पंख लेकर

 नाचता है जब मयूरा

मोरनी के प्रेम को ही

 बाँचता है जब मयूरा 

जब दृगों से मोर के यूँ

प्रेम का अमृत है झता

देख अकलुष इस सुधा को,

प्रेम की इस सम्पदा को,

मैं भी साथी प्रेम का उद्गार रचती हूँ...

तुम्हारा प्यार रचती हूँ....

 

चाँद की चाहत कुमुदिनी

 के हृदय का द्वार खोले 

चाँदनी का प्यार पाकर

उदधि भी लेता हिलोरें 

सींचकर अमृत सुधाकर

बस निशा में प्यार घोले 

चाँद का उत्सर्ग पाकर,

उस मधुर पल में समाकर,

चाँद सा निर्मल - धवल अभिसार रचती हूँ..

तुम्हारा प्यार रचती हूँ.....

 

तुम हमारे प्रेम जीवन

की मधुर सी कल्पना हो

आँसुओं से जो रची जाती

वो ही  तो अल्पना हो

तुम हमारे प्राण के आधार मन की प्रेरणा हो

हूँ तुम्हारे बिन अधूरी,

पर बनी मीरा तुम्हारी,

वेदनाओं का विकल संसार रचती हूँ...

तुम्हारा प्यार रचती हूँ...

मन में मैं तुमको हजारों बार रचती हूँ 

तुम्हारा प्यार रचती हूँ.....

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Monday, May 27, 2024

1418

1-अविरल क्रम/ शशि पाधा

 


भोगा न था चिर सुख मैंने

और न झेला चिर दुख मैंने

संग रहा जीवन में मेरे

सुख और दुख का अविरल क्रम

कभी विषम था, कभी था सम

 

किसी राह पर चलते चलते

पीड़ा से पहचान हुई 

अँखियों के कोरों से पिघली

 फिर भी मैं अनजान रही

   

हुआ था मुझको मरुथल में क्यूँ 

सागर की लहरों का भ्रम?

शायद वो था दुख क्रम।

 

कभी दिवस का सोना घोला

पहना और इतराई मैं

और कभी चाँदी की झाँझर

चाँद से लेकर आई मैं

 

 प्रेम हिंडोले बैठ के मनवा

 गाता था मीठी सरगम

 जीवन का वो स्वर्णिम क्रम।

 

पूनो और अमावस का

हर पल था आभास मुझे

छाया के संग धूप भी होगी

इसका भी एहसास मुझे

 जिन अँखियों से हास छलकता

 कोरों में वो रहती नम

 समरस है जीवन का क्रम।

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2- कुछ पल/ सुरभि डागर 

 


कुछ पलों में 

बड़ा मुश्किल होता है 

भावों को शब्दों में पिरोना,

बिखर जाते हैं कई बार

हृदयतल में 

मानों धागे से मोती 

निकल दूर तक

छिटक रहे हों।

अनेकों प्रयास कर 

समेटने के; परन्तु 

छूट ही जाते कुछ 

मोती और

तलाश   रहती है बस

धागे में पिरोकर

माला बनाने की

रह जाती है बस अधूरी-सी कविता

कुछ गुम हुए 

मोतियों के बिना ।

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3- निधि कुमारी सिंह

 


1-ये सफ़र न खत्म होगा

 

ये सफऱ न खत्म होगा 

आज हकीकत में 

तो कल यादो में 

ये सिलसिला जारी रहेगा 

क्योंकि ख्वाबों में ही सही 

पर अकसर हमारी मुलाकातें होती रहेंगी 

फासले तो बेशक़ रहेंगे 

पर कभी ये सफ़र न खत्म होगा 

कुछ यादों को हमने समेटा है 

और कुछ यादें, जिन्हें आपने सँजोया है 

उन्हीं को सँभालते हुए 

ये सफऱ यों ही बरकरार रखेंगे 

न सोचना कि यह सफऱ यहीं तक था

क्योंकि ये सफऱ न खत्म होगा 

सफ़र की यह दहलीज ही ऐसी है 

जहाँ सफलता की मुस्कान है 

पर फिर भी नम हैं दोनों की आँखें

क्योंकि पल है यह विदाई का 

हम दूर रहकर भी पास रहेंगे 

एक दूजे के यादों में जिएँगे 

यों ही मुस्कुराते रहेंगे हम और आप 

कभी याद करके तो कभी याद आकर 

परन्तु ये सफ़र कभी खत्म न होगा ।

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