प्रीति
अग्रवाल ‘अनुजा’(
कैनेडा)
1.
फ़िलहाल
तो ख़्वाबों पर पहरे नहीं हैं
तुमने
आना- जाना क्यों
कम कर दिया है?
2.
हमने
हाल अपना, ज़रा हँसके क्या टाला
तमाशे
का ज़माने को, सामाँ मिल गया है!
3.
बहरहाल
न शिकवा कोई, और न ही गिला है
बस, हाल कहते जिससे, वो शख़्स न मिला है!
4.
मेरे
हाल पे अश्क बहाने वालो !
मगरमच्छ
भी तुमसे हैं तौबा करते!
5.
एक
ही बोली में बरसों बतियाए
न
तुम हमें समझे, न हम ही समझ पाए!
6.
मीलों
चले तन्हा, न थके न ऊबे
दो
कदम तुम्हारे साथ, दुश्वार हो गए!
7.
मेरे
हमदम, तेरा साथ था कितना मुबारक
सफ़र तय हुआ कब, खबर ही नहीं!
8.
जब
भी चाहो, चुपचाप चले जाना
तुम्हारे
कदमों की आहट से मैं जान लूँगी !
9.
खिड़कियों
में न झाँकके, दिलों में झाँका होता
ज़माने
का जो हाल है, वो हाल फिर न होता!
10.
इन
किनारों का मुक्कदर भी हमारा-सा है
साथ
चल तो पड़े, पर मिलेंगें नहीं।
11.
ये
जो तुम बिन कहे, मेरी बात समझ जाते हो
लगता
है, मुझसे ज्यादा, मुझ से वाक़िफ़
हो!
12.( दोहा )
'मैं, मेरा, मुझको' यही,
रटन लगी दिन रात
आठ पहर
कुल थे मिले, बीत गए हैं सात!!
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2- दोहे
सविता
अग्रवाल 'सवि', कैनेडा
1
कोरोना
है चल रहा, टेढ़ी गति की चाल ।
घर
बैठा मानव डरा, मिली न अब तक ढाल ।।
2
दानव- सी आकर खड़ी, कोरोना की पीर ।
विपदा
की कैसी घड़ी, तरकश में ना तीर ।।
३
कोरोना घातक बना, छाया
है कुहराम ।
मन
ही मन सब भज रहे, ईश्वर का ही नाम ।।
4
जग
सारा भयभीत है, बीमारी की मार ।
घर
के अन्दर क़ैद हैं,
होकरके लाचार ।।
5
छेड़-छाड़
तुम ना करो, करो प्रकृति का मान ।
तोड़ोगे
जो रीत तो, टूटेगा अभिमान ।।
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