पथ के साथी

Thursday, April 9, 2020

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प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’( कैनेडा)
1.
फ़िलहाल तो ख़्वाबों पर पहरे नहीं हैं
तुमने आना- जाना  क्यों कम कर दिया है?
2.
हमने हाल अपना, ज़रा हँसके क्या टाला
तमाशे का ज़माने को, सामाँ मिल गया है!
3.
बहरहाल न शिकवा कोई, और न ही गिला है
बस, हाल कहते जिससे, वो शख़्स न मिला है!
4.
मेरे हाल पे अश्क बहाने वालो !
मगरमच्छ भी तुमसे हैं तौबा करते!
5.
एक ही बोली में बरसों बतियाए
न तुम हमें समझे, न हम ही समझ पाए!
6.
मीलों चले तन्हा, न थके न ऊबे
दो कदम तुम्हारे साथ, दुश्वार हो गए!
7.
मेरे हमदम, तेरा साथ था कितना मुबारक
र तय हुआ कब, खबर ही नहीं!
8.
जब भी चाहो, चुपचाप चले जाना
तुम्हारे कदमों की आहट से मैं जान लूँगी !
9.
खिड़कियों में न झाँकके, दिलों में झाँका होता
ज़माने का जो हाल है, वो हाल फिर न होता!
10.
इन किनारों का मुक्कदर भी हमारा-सा है
साथ चल तो पड़े, पर मिलेंगें नहीं।
11.
ये जो तुम बिन कहे, मेरी बात समझ जाते हो
लगता है, मुझसे ज्यादा, मुझ से वाक़िफ़ हो!
12.( दोहा )
'मैं, मेरा, मुझको' यही, रटन लगी दिन रात
आठ पहर कुल थे मिले, बीत गए हैं सात!!
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2- दोहे
सविता अग्रवाल 'सवि', कैनेडा
1
कोरोना है चल रहा, टेढ़ी गति की चाल
घर बैठा मानव डरा, मिली न अब तक ढाल ।।
2
दानव- सी आकर  खड़ी, कोरोना की पीर ।
विपदा की कैसी घड़ी, तरकश में ना तीर ।।
कोरोना घातक बना, छाया है कुहराम 
मन ही मन सब भज रहे, ईश्वर का ही नाम ।।
4
जग सारा भयभीत हैबीमारी की मार ।
घर के अन्दर क़ैद हैं, होकरके लाचार ।।
5
छेड़-छाड़ तुम ना करोकरो प्रकृति का मान ।
तोड़ोगे जो रीत तो, टूटेगा अभिमान ।।  
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