पथ के साथी

Saturday, March 17, 2018

806-काँच की चूड़ियाँ



डॉ० कविता भट्ट

घोर रात में भी खनखनाती रही
पीर में भी  मधुर गीत गाती रही ।

लाल-पीली-हरी काँच की चूड़ियाँ
आँसुओं से भरी काँच की चूड़ियाँ ।


उनके दाँव - पेंच में, टूटती रही
ये बिखरी नहीं, भले  रूठती  रही ।

प्यार में  थी मगन काँच की चूड़ियाँ
खुश रही हैं सदा, काँच की चूड़ियाँ ।

माना चुभी है इनकी प्यारी चमक
ये खोजती  नई रोशनी का फ़लक ।

नभ में छाएँगी काँच की चूड़ियाँ
इन्द्रधनुषी सजी काँच की चूड़ियाँ ।

कोई नाजुक इन्हें भूल कर न कहे
इनका ही रंग-रूप रगों में बहे।

सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ
अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ ।
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हे० न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड