डाॅ. सुरंगमा यादव
1
दर्द या प्रेम
जीवन में समाए
ढाई आखर।
2
स्पर्श तुम्हारा
रोम-रोम में फूटी
नेह की धारा।
3
भावों का मेला
कंपित हैं अधर
बीते न बेला।
4
तुम्हें देखके
खिल उठे जलज
नैन जल में।
5
मन धरा पे
तुमने बोये स्वप्न
सींच रही मैं।
6
जादू तुम्हारा
नयन स्वप्नशाला
बने हमारे।
7
मिलती हार
क्रोध से जीता कौन ?
किसी का प्यार।
8
सुनो ओ प्रिय !
सर्दी की धूप सम
तुम हो प्रिय।