पथ के साथी

Monday, December 12, 2016

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यादें
प्रियंका गुप्ता
1
यादें
कभी यूँ भी होती हैं
मानो,
किसी सर्द रात में
बर्फ़ हो रहे बदन पर
कोई चुपके से
एक गर्म लिहाफ़ ओढ़ा जाए ।
2
यादें
कभी दर्द होती हैं
और कभी
किसी ताज़ा घाव पर
रखा कोई ठंडा मरहम ।
3
यादें
मानो,
कभी जल्दबाज़ी में
सर्र से छूटती कोई ट्रेन
भाग के पकड़ो
वरना फिर
जाने कब पकड़ पाएँ ?
4
यादें-
कभी सर्दी में 
बदन पर पड़ा बर्फ़ीला पानी;
या फिर
किसी हड़बड़ी में
जल गई उँगली पर
उगा एक फफोला;
तकलीफ तो होती है-
है न ?
-0-