ज्योत्स्ना प्रदीप
1
जब घोर-अँधेरा है ।
गुरुवर साथ रहे
फिर भोर-सवेरा है ।
2
तपकर संतोषी हैं ।
जो उनको दुख दे
वो घातक दोषी हैं !
3
तन तो बस माटी है ।
ज्ञान -बीज भरते
हरियाली बाँटी है ।
4
जीवन घन-काला हैं ।
दिनकर मन कर दे
गुरु ज्ञान -उजाला हैं ।
5
गुरुवर को हम पूजें ।
गुरु का मान करो
छोड़ो झगड़े दूजे ।
6
जीवन में तम
छाए ।
दिनकर -गुरुवर से
किरणें हम तक आएँ ।
7
बाकी सब कुछ भूलें ।
पाँवो के संग-संग
मन उनका हम छू लें !
8
पथ उनके ही चलना ।
मान करो मन से
उनको न कभी छलना ।
9
वो वतन सदा ऊँचा ।
गुरुवर मान करें
महके फिर हर कूँचा !
10
बस पतन वहीं होता ।
गुरुवर को दुख दे
वो हरपल ही रोता !