पथ के साथी

Sunday, August 25, 2019

925


1-बस यूँ ही  
शशि पाधा

जहाँ बर्तन 
 बात न करें 
जहाँ चीज़ें 
 तरतीब न भूलें 
और तस्वीरें 
टेढ़ी न लटकें 
जहाँ फलों की खुशबू
सॉंसों में न समाए
और पौधों को धूप 
 छू न पाए 
जहाँ मुस्कान 
उधारी में आए 
और नेह  
गिरवी हो जाए 
उसे घर कहें 
या ???????????
-0-

2- पथ प्रदर्शक!
डॉ. पूर्वा शर्मा

अरे ओ मार्गदर्शक,
पथ प्रदर्शक!
सदा दूसरों को
राह दिखाने वाला,
हौंसला देने वाला,
क्या हुआ है तुझे?
यूँ आहत न हो तू
हिम्मत न हार तू,
क्या हुआ यदि
मुखौटों उतरने लगे
कुछ मतलबियों के,
किसी के द्वार
बंद कर देने से
सूर्य चमकना
नहीं छोड़ देता,
अरे उन्मुक्त गगन में
विचरण करने वाले
यूँ घसीटकर
नहीं चल सकती
तेरी ये ज़िंदगी
तू दौड़ ख़ुशी से
पकड़ ले फिर
ज़िन्दगी की रफ़्तार,
वैसे भी धुल जाते हैं
कुछ रंग बारिश से,
तो कुछ न रंग
दे भी जाती है ये बारिश
दूसरी ओर देख तू
अब साफ़ है सब कुछ
भर दे अपनी तूलिका से
पसंदीदा रंग
इस ज़िंदगी में,
बहुत हसीन है
ये ज़िन्दगी
तू मुस्कुराकर तो देख।
-0-


Sunday, August 18, 2019

924


प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

1-सिर्फ़ मैं

ये अहं ,
बड़ा दुखदायी है,
अजगर सी ,
कलस्याही है,

जिससे इसको 
दूध पिलाया,
समझो लिखी
जुदाई है!
                              
-0-
2: रज़ामंदी

सोचती हूं क्या माँगू?
जो तूने ,
एक ह का
हकदार किया!

चल,
यों कर मौला-
तेरी रज़ा 
और मेरी रज़ा
एक हो जाए!

कभी तू कहे
तो मैं मान जाऊँ,
और कभी मैं कहूँ
तो तू मान जाए!!
-0-
3-क़्त

समझने लगी हूँ
वक्त को
वक्त की नज़ाकत को !

सोचती तब भी थी
सोचती अब भी हूँ,
बस
ज़ाया हो वक़्त
ये हिमाकत नहीं!!
-0-
4- बधाई

अम्मा जी बधाई
घर आपके,
लक्ष्मी है आई!!
अम्मा हर्षाई।

बाबा तुनके,
बोझा है ढोना
जो सारी उमर,
शर्फ़ी की बोरी
कहने से,
क्या होगा कम!!??
-0-
5-पतंग

मैं रंगीली
और मनचली
नील गगन
की और उड़ी!

फिक्र मुझे
न धरा पड़ूँ,
न शून्य में
खो जाने का।

मैं इतराऊँ
मन मुस्काऊँ,
डोरी तेरे
हाथ थमी !!
-0-
6- श्याम बसेरा (ब्रज भाषा में)

देख ले हरिया-
मोरे मन श्याम बसेरा,
पहले ही दीजू कहाए,
अब ब्याहे ,तो ब्याह ले!!

हरिया हासा -
ले मिल गई जोड़ी
मेरो मन भी श्याम समाए!!!
-0-
7- मैं

ये 'मैं' की अकड़,
ये 'मैं' की तड़ी,
देखो न कितनी 
भारी पड़ी!

मकड़ी हो जैसे
जाल मे फँसी,
दुनिया ये सारी,
अकेली खड़ी!!
-0-
8-सूझबूझ

मिल बैठ ग्वलनियाँ
करे सुझाई,
किसना नाम 
कोई मत राखियों
घनो सतावै!!

राम दुहाई!
कैसी मत बिसराई,
गाँव भर अब,
गोपाल गोविंद,
मुरारी कन्हाई!!
-0-

Thursday, August 15, 2019

923

मुकेश बाला


कल का माहौल
आज बता देती हूँ
उस दृश्य की झांकी
आज दिखा देती हूँ
चारों तरफ़ बहेगी
देशभक्ति की धारा
तिरंगे के सिवा कुछ
ना होगा हमें गवारा
हर किसी की डीपी पर
ये तिरंगा छा जाएगा
शहादत बसेगी हृदय में
हर शहीद याद आएगा
ट्विटर ब्लॉग फेसबुक
इनके आगे जाएंगे झुक
अल्फ़ाज़ निकलेंगे
देशभक्ति से ओतप्रोत
चारों तरफ़ छा जाएंगे
देशप्रेम के स्रोत
तीन रंगों में रंगा
होगा हर चेहरा
मुखौटा लिए हाथ में
देशभक्ति देगी पहरा
इस स्रोत वाहिनी में तो
ऊपरी सतह से ही बहेंगे
अन्दर से तो जो थे
हम वहीं है वहीं रहेंगे
जैसे ही फिर शाम होगी
जिन्दगी सबकी आम होगी
अनंत में तारे जब छा जाएंगे
सब अपने रस्ते आ जाएंगे
क्या करें इसमें
हमारी खता नहीं
क्या है देशभक्ति
हमें पता नहीं

Tuesday, August 13, 2019

922-प्रियंका गुप्ता की कविताएँ


प्रियंका गुप्ता
1-सराय

लो,
आज सौंप रही हूँ तुम्हें
चित्र- प्रीति अग्रवाल
तुम्हारे दिए सभी वादे;
खोल रही हूँ
अपना नेह-बंधन
मेरे प्यार के पिंजरे का
ताला खुला है
जाओ,
खूब ऊँची परवाज़ भरो
दूर तक विस्तार करो
अपने पंखों का
और जब कभी थक जाना
तो लौटना नहीं
मैं तक न सकूँगी तुम्हारी राह,
इंतज़ार भी नहीं करूँगी
तुम्हारे लौट आने का;
क्योंकि
तुमने शायद
कभी ठीक से देखा ही नहीं;
मैं बसेरा थी तुम्हारा
कोई सराय नहीं...।
-0-
2- फ़र्क पड़ता है...

क्या फ़र्क पड़ता है
कि मैंने
तुम्हें कितना प्यार किया;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुम्हारी एक आवाज़ पर
मैं कितनी दूर से भागती आई;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुम्हारी एक मुस्कुराहट पर
मैंने अपने कितने दर्द वारे;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुममें रब को नहीं
मैंने खुद को देखा;

सच तो ये है 
कि अब किसी बात से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता;
क्योंकि
तुमको तो जाना ही था
यूँ ही हाथ छुड़ाकर
ग़लत कहा,
हाथ छोड़कर
पर सुनो,
जाने से पहले
अपने वजूद से झाड़- पोंछ देना मुझे
फिर ग़लत-
अपने वजूद से झाड़ पोंछ दूँगी तुम्हें
क्योंकि
तुम्हें पड़े न पड़े
मुझे बहुत फ़र्क पड़ता है
तुम्हारा कुछ भी रहा मुझमें
तो खुल के साँस कैसे आएगी मुझे
आज़ादी की...।
-0-
3- पासपोर्ट

वो खिड़की
जिस पर खड़े होकर
मेरी निगाहें मुट्ठी भर आसमान
अपनी नन्ही हथेलियों में बाँध लेती थीं
चित्र- प्रीति अग्रवाल
गेट के पार
देखने की कोशिश करते
वहीं पर खूब ऊँचे तक
उचकते मेरे छोटे से कदम
कभी-कभी थक जाया करते थे
खिड़की के उस पार
एक बड़ा समुंदर था
जिस में तैरती थीं
मेरे सपनों की नन्ही रंगीन मछलियाँ
और एक कागज़ की नाव भी,
जिस पर बैठ के
जाने कहाँ -कहाँ तक
घूम आती थी मैं
खिड़की अब शायद चटक गई होगी
मेरे बड़े और मजबूत  पैरों का बोझ
उठाया नहीं जाएगा उससे
पर फिर भी
कौन जाने
मेरा समुंदर आज भी वहीं हो
और हिचकोले खाती नाव भी
बस अब
दूर देश जाने का
पासपोर्ट मेरे पास नहीं...।
-0-सम्पर्क-priyanka.gupta.knpr@gmail.com

Wednesday, August 7, 2019

921-रघुबीर शर्मा के दो नवगीत

1-हर चौराहा पानीपत है

इस बस्ती में
नई-नई
घटनाएँ होती है।

हर गलियारे में दहशत है
हर  चौराहा पानीपत है
घर, आँगन, देहरी, दरवाज़े
भीतों के ऊँचे पर्वत हैं
संवादों में
युद्धों की भाषाएँ होती हैं।

झुलसी तुलसी अपनेपन की
गंध विषैली चन्दनवन की
गीतों पर पहरे बैठे हैं
कौन सुनेगा अपने मन की
अंधे हाथों में
रथ की
वल्गाएँ होती हैं।
-0-
2- अपना आकाश

नम आँखों से 
देख रहे हैं 
हम अपना आकाश। 

देख रहे हैं बूँदहीन
बादल की आवाजाही। 
शातिर हुई हवाओं की
नित बढ़ती तानाशाही।। 
       खुशगवार
       मौसम भी बदले
       लगते बहुत उदास। 

टुकड़े-टुकड़े धूप बाँटते 
किरणों के सौदागर। 
आश्वासन की जलकुंभी से 
सूख रहे हैं पोखर।। 

    उर्वर वसुधा के भी 
      निष्फल 
    हुए सभी  प्रयास।।
                    -0-

Saturday, August 3, 2019

920-लबालब बड़ौदा


डॉ.पूर्वा शर्मा

लबालब बड़ौदा 

मगर   शब्द को क्लिक कीजिए


1.
श्रावण मास
ले बैठा वड़ोदरा
जल समाधि ।
2.
कैसा कहर
विश्वामित्री उफनी
डूबा शहर ।
3.
कजरी गाते
शहर में मगर
गश्त लगाते ।
4.
ढूँढते भोज
गली-शहर घूमे
मगर-फौज ।

5.
पार लगाती
एन डी आर एफ
जान बचाती  
6.
बाढ़ ने मारा
मानवता सहारा
कोई न हारा ।
7.
वर्षा तांडव
चीखे मेघ, तड़ित
धरा प्लावित ।
8.
डूबता कैसे?
लबालब बड़ौदा
हौंसला जिंदा ।
9.
माँगी थी बूँदें
मिल गया सागर
रॉंग नंबर ।
10.
जलीय बने
सिर तक पानी में
तैरते चले ।
11.
पार लगाते
वासुदेव दरोगा*
बच्ची बचाते ।
-0-
*वासुदेव की तरह पुलिस कर्मी ने नन्ही-सी बच्ची को सर पर उठा कर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से बचाया ।