पथ के साथी

Wednesday, November 30, 2016

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1-नहीं होता  -डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।


अश्कों का आजकल कोई दाम नहीं होता।
दिल टूट भी जातो कोहराम नहीं होता।।

परदेस में जाकर वो हो गया है निकम्मा ;
देश में आकर फिर उससे काम नहीं होता।।

बाट जोहते-जोहते माँ दिखती है पत्थर;
अखियों के नूर का अब पैगाम नहीं होता।।

विष बेल बीजकर लूट लिया अपना ही देश;
आतंकवादियों का कोई राम नहीं होता।।

भाषण देते और जो सिर्फ बातें ही करें ;
उन नेताओं सा और बदनाम नहीं होता।।

झकझोर दिया भारत की नस-नस को पाक ने;
बिना बात किसी का कत्लेआम नहीं होता।।

छीनते हैं जो औरों के मुँह से निवाला;
पूर्णिमामें उन लोगों का नाम नहीं होता।।

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2-गीतिका- डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर
दुनिया में सबका ही खून लाल होता है।
फिर भाई-भाई में क्यों बवाल होता है।।

खनक चंद सिक्कों की नित बढ़ती ही जाए;
माँ-बापू के रहते  इंतकाल होता है।।

बढ़ने लगी नफरतें मिटने लगा है प्यार ;
टूट रहे नाज़ुक रिश्ते मलाल होता है।।

जमाखोर करते देखो कंजूसी कितनी ;
जेब भरी नोटों से बुरा हाल होता है।।

अपने हाथ हुनर से जो जीतेगा दुनिया;
भारत माँ का सच्चा वही लाल होता है।।

भिखमंगों का जीवन देखो वे भी इन्साँ;
सुनो 'पूर्णिमा' उनका भी सवाल होता है।।