1-नहीं होता -डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर।
अश्कों का आजकल कोई दाम नहीं होता।
दिल टूट भी जाए तो कोहराम नहीं होता।।
परदेस में जाकर वो हो गया है निकम्मा ;
देश में आकर फिर उससे काम नहीं होता।।
बाट जोहते-जोहते माँ दिखती है पत्थर;
अखियों के नूर का अब पैगाम नहीं होता।।
विष बेल बीजकर लूट लिया अपना ही देश;
आतंकवादियों का कोई राम नहीं होता।।
भाषण देते और जो सिर्फ बातें ही करें ;
उन नेताओं सा और बदनाम नहीं होता।।
झकझोर दिया भारत की नस-नस को पाक ने;
बिना बात किसी का कत्लेआम नहीं होता।।
छीनते हैं जो औरों के मुँह से निवाला;
‘पूर्णिमा’ में उन लोगों का नाम नहीं होता।।
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2-गीतिका- डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर
दुनिया में सबका ही खून लाल होता है।
फिर भाई-भाई में क्यों बवाल होता है।।
खनक चंद सिक्कों की नित बढ़ती ही जाए;
माँ-बापू के रहते इंतकाल होता है।।
बढ़ने लगी नफरतें मिटने लगा है प्यार ;
टूट रहे नाज़ुक रिश्ते मलाल होता है।।
जमाखोर करते देखो कंजूसी कितनी ;
जेब भरी नोटों से बुरा हाल होता है।।
अपने हाथ हुनर से जो जीतेगा दुनिया;
भारत माँ का सच्चा वही लाल होता है।।
भिखमंगों का जीवन देखो वे भी इन्साँ;
सुनो 'पूर्णिमा' उनका भी सवाल होता है।।