सुदर्शन रत्नाकर की छोटी कविताएँ
प्यार,
प्यार से छू लो तो
कलियाँ
निखर आएँगी
मौसम की
पत्तियाँ हैं
लहराने दो
पतझड़
आने पर स्वयं ही
बिखर जाएँगी।
-०-
2. प्रतीक्षा
मैं बरसों से प्रतीक्षा कर रही हूँ
उस उजली धूप और
हरी दूब के लिए,
जहाँ एक नदी बहती हो
और मैं भी हिमखंड -सी पिघलती
नदी बन जाऊँ।
निरन्तर गतिशील बहती
अँजुरी -अँजुरी प्यार बाँटती
सागर की गहराइयों में
कहीं खो जाऊँ ।
-०-
3- 55-एक नदी एहसास की
एक नदी बाहर बहती है रिश्तों की
एक नदी भीतर बहती है एहसासों की
नदी के भीतर कुछ द्वीप हैं, बंधनों के
कुछ बंधन हैं काँटों के
कुछ रिश्ते हैं फूलों के
मैंने जीवन में जो बोया है
उसको ही काटा है
दुख झेला है, सुख बाँटा है
अपनों का दिया विष पी-पीकर
अमृत के लिए मन तरसा है।
-०-
4. काश
काश मैं पाखी होती
और
आसमान में उड़ती रहती
काश
मैं मछली होती तो
सागर में तैरती रहती
पर
मैं तो आदमजाद हूँ
और
धरती पर चल भी नहीं सकती।।
-०-
5-उधार की जिंदगी
घोंसला बनाने की चाह में
जिंदगी भर वह
जिंदगी को ढोता रहा
पर
न तो उसे जिंदगी मिली
और
न घोंसला।
टूटता रहा
वह पल-पल
जीता रहा उधार की जिंदगी।
-०-
6- दिवास्वप्न
मैंने देखा, एकांत -निर्जन स्थान पर
पेडों के झुरमट के बीच
मौलसिरी के फूलों से लदी एक पर्णकुटीर है
जिसमें मैं शांत भाव से बैठी हूँ।
झरने के निर्मल जल का, कल- कल करता स्वर
पक्षियों का कलरव
मेरी आत्मा को आह्लादित कर रहा है
कंकरीट से बने इस शहर में,
इस दिवास्वप्न का एहसास
कितना सुखद है, इसे मैं ही जानती हूँ।
-०-