1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तुम्हारा रूप
मंदिर में पावन
जलती धूप ।
2
भाव -तरंग
छलकी चेहरे पे
नई उमंग।
3
व्याकुल प्राण
जब देखा तुमको
मिला है त्राण ।
4
चाह इतनी
:
अन्तिम साँसें जब
तुम हो पास ।
5
तुम्हारी साँसें
मलयानिल भीगा
भोर- समीर ।
6
तुम्हारे नैन
जीवन -उमंग का
भरे हैं नीर।
7
तेरा मिलना
शोख फूलों का मिल
जैसे खिलना।
8
सब ले लेना
दो पल बदले में
चैन के देना
।
-0-
और अन्त में ज्योत्स्ना
प्रदीप के एक हाइकु की सहज और मोहक अभिव्यक्ति
पर ससम्मान एक जुगलबन्दी !
1- ज्योत्स्ना प्रदीप
1
सहेजे
मैने
तेरे दिये
वो काँटे
कभी ना बाँटे।
-0-
रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
सँजोए काँटे,
रूप और खुशबू,
जग को बाँटे।
-0-
केन्द्रीय विद्यालय की प्राचार्या के रूप में छात्रों
का अहर्निश हित -चिन्तन करते हुए भी मेरे
लिए अपने हृदयोद्गार का समय निकाल लेती हैं । अनुजा के इन भावों ( मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के प्रति इतनी
आत्मीयता !)के लिए अनुगृहीत हूँ ।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
-0-
आपका जन्मदिन आया और मुझे पता ही नहीं चला भैया ... कमला निखुर्पा
1
गगन चुम्बी
हिमशिखर बनें
हिमांशु आप ।
2
सहे जो ताप
पिघल कर बहे
बुझाए प्यास ।
3
मेघों की पाग
बाँध धरा को सींचे
किसान आप ।
4
उर्वर करे
बंजर जीवन को
निर्झर बहे ।
-0-