पथ के साथी

Tuesday, March 25, 2014

चाह इतनी :

1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तुम्हारा रूप
मंदिर में पावन
जलती धूप ।
2
भाव -तरंग
छलकी चेहरे पे
नई  उमंग।
3
व्याकुल प्राण
जब देखा तुमको
मिला है त्राण ।
4
चाह इतनी :
अन्तिम साँसें जब
तुम हो पास ।
5
तुम्हारी  साँसें
 मलयानिल भीगा
भोर- समीर ।
6
तुम्हारे नैन
जीवन -उमंग का
भरे हैं नीर।
7
तेरा मिलना
शोख फूलों का मिल
जैसे खिलना।
8
सब ले लेना
दो पल बदले में
 चैन के देना ।
-0-

और अन्त में ज्योत्स्ना प्रदीप के एक हाइकु की सहज  और मोहक अभिव्यक्ति  पर  ससम्मान एक जुगलबन्दी  !
1- ज्योत्स्ना प्रदीप
1
सहेजे मैने
तेरे दिये वो काँटे
कभी  ना बाँटे।
-0-
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
सँजोए काँटे,
रूप और  खुशबू,
जग को बाँटे।
-0-
केन्द्रीय विद्यालय की प्राचार्या के रूप में छात्रों का अहर्निश हित -चिन्तन करते हुए भी  मेरे लिए अपने हृदयोद्गार का समय निकाल लेती हैं । अनुजा के इन भावों  ( मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के प्रति इतनी आत्मीयता !)के लिए अनुगृहीत हूँ ।
-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
-0-
आपका जन्मदिन आया और मुझे पता ही नहीं चला भैया  ... कमला निखुर्पा
1
गगन चुम्बी
हिमशिखर बनें  
हिमांशु आप  
2
सहे जो ताप
पिघल कर बहे
बुझाए प्यास
3
मेघों की पाग
बाँध धरा को सींचे
किसान आप
4
उर्वर करे 
बंजर  जीवन को
निर्झर बहे
-0-