रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
दोहा-एक दिन कहने लगे, हमसे कफ़नखसोट ।
‘महादान से ही मिटें, जनम -जनम
के खोट॥’
चपरासी, गुरु या अधिकारी।
दारोगा , बाबू , पटवारी ।
रिश्वत इनको जो दे आता
। मुँह-माँगा फल जग में पाता।
आशु फलदायिनी सुखकारी
। महादान की यह बीमारी ॥
सच्चा साधक कभी न डरता
। दुनिया भर का धन वह हरता ॥
वेतन अपना घर में धरता
। घूस नोंच बैंकों में भरता ॥
बिना दिए जो काम कराता
। केवल वही नरक में जाता ।
चाहे जितने पाप कमाओ ।
रिश्वत देकर छुट्टी पाओ ।।
जब तक भेंट नहीं चढ़ती है। फ़ाइल आगे ना बढ़ती है ॥
बिना खिलाए साहब लड़ता
। खा लेने पर बाँह पकड़ता ॥
दोहा-पिटते इनके हाथ से, क़ायदे व क़ानून ।
इनकी कलम छुरी बने, करदे सौ-सौ
खून ॥
शिव के गण भी इनसे डरते । यमदूत यहाँ पानी भरते।
ज्ञान और गुण धक्के खाते।
उल्लू घर-घर पूजे जाते ।
साहब के घर भेज मिठाई
। नहीं किसी ने मुँह की खाई॥
इनकी छाया जिस पर पड़ती
। मौत न उसके आगे अड़ती ।
गुण्डे ,बनकर साँड टहलते ।
चौराहों पर सुरती मलते ।
लूट-खसोट व चोरी-जारी
। इसी से है सभी की यारी ॥
बेईमानी जो भी करता ,भव-सागर
से पार उतरता ।
रिश्वत लेता पकड़ जाए ।
रिश्वत देकर वह छुट जाए ।
जो भी इनकी निन्दा करता।
नरक लोक में सदा विचरता ।
दोहा-कुछ न पता परलोक का , हे मूरख इंसान ।
जीवन बीता जा रहा, एक पथ महादान ॥
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