पथ के साथी

Sunday, March 18, 2007

सम्पर्क-सूत्र

आप अपनी रचनाएँ यूनिकोड में(यूनिकोड सुविधा न होने पर कृतिदेव या शुषामें) टाइप कराकर निम्नलिखित पते पर ई मेल कर सकते हैं।किसी प्रकार के मानदेय की व्यवस्था नहीं है। रचना मौलिक होनी चाहिए । नकारात्मक सोच की रचना न भेजें ।
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मेरी पसन्द

पूर्णिमा वर्मन के नवगीतमर्मस्पर्शी किन्तु सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहना सबसे कठिन काम है । भाषा की लम्बी साधना से ही यह सिद्धि प्राप्त हो सकती है ।जीवन की जटिलताओं को आत्मीय भाव से हृदय तक पहुँचाना इस आपाधापी के युग में तो और भी असाध्य है । पूर्णिमा वर्मन ऐसा नाम है जो आज रची जा रही कविताओं में पूरी ऊष्मा के साथ अपनी छाप छोड़ने में सक्षम है । ‘यह हुई न कविता’बरबस ही पाठक कह उठेगा ।पाठक –प्रिय साहित्य ही लोकप्रिय हो सकता है ।जो गिने-चुने लोगों के लिए लिख रहें हैं ,उनकी रचनाएँ या तो पाठयक्रम मे जुड़कर विद्यार्थियों में अरुचि पैदा कर सकती हैं या पुस्तकालयों की अल्मारियों की शोभा बढ़ाकर कालान्तर में दीमकों का आहार बन सकती हैं । पूर्णिमा वर्मन की रचनाएँ www.anubhuti-hindi.org पर देखी जा सकती हैं।-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ .