परमजीत कौर 'रीत'
कहीं आँखों का सागर
बोलता है
जुबाँ चुप हो तो पैकर
बोलता है
वो दिखता है जो अंदर
बोलता है
है जो सीपी में, गौहर बोलता है
सदाएँ पुरअसर हों और कशिश भी
तो फिर अंदर का पत्थर
बोलता है
शराफ़त है कि अक्सर
क़त्ल करके
'फ़लाँ क़ातिल
है' खंज़र बोलता है
कहीं जाओ तो जल्दी
लौट आना
ये हर बेटी से अब घर
बोलता है
दिलों के ग्रंथ पढ़ना
‘रीत’ मुश्किल
वहाँ अक्षर पे अक्षर
बोलता है
-0-(आकाशवाणी सूरतगढ़ के 'महिला -जगत'
कार्यक्रम की काव्य गोष्ठी में 15 अगस्त 2018
को प्रसारित )