पथ के साथी

Saturday, April 8, 2017

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 1- श्वेता राय

अप्रैल 1857

सत्तावन था वर्ष सदी का,धरती ने ली अँगड़ाई।

अंग्रेजों की चाल समझकर, जगी यहाँ की तरुणाई।

।कहते थे विद्रोह जिसे वो, आज़ादी की थी ज्वाला।

जिसकी लपटों ने गोरों की, गद्दी को झुलसा डाला।।

प्रथम राह वो आज़ादी की, बांध कफ़न सब निकल पड़े।

उत्तर भारत के सब वासी, अंग्रेजों से खूब लड़े।।

अंग अंग में जोश भरा था, जन जन में तूफ़ान भरा।

धरती हो आज़ाद हमारी, मन में ये अरमान भरा।।

बलिया के थे वीर सिपाही,मंगल जिनका नाम था।

ईस्ट इण्डिया की सेना में, लड़ना जिनका काम था।।

पहला शंख फूंक कर जिसने, महायज्ञ प्रारम्भ किया।

समिधा में जीवन को अपने, बढ़कर जिसने दान दिया।।

मेरठ की इस दीप शिखा से, जगमग सारा देश हुआ।

गोरे शासक भी थे सहमे, जोश भरा परिवेश हुआ।।

बलिवेदी पर चढ़ कर मंगल, द्वार मुक्ति का खोल गए।

राष्ट्रप्रेम है धर्म हमारा, हँसकर सबसे बोल गए।।

उनकी अर्थी पर ही अपने,सपनो का संसार बसा।

अंग्रेजो भारत तुम छोडो, कहने का हुंकार बसा।।

मंगलपांडे को मन में रख, दुर्गम पथ पर सभी बढ़ो।

शीश झुका बलिदान दिवस पर, नवल नित्य प्रतिमान गढ़ो।।

【मंगल पांडे की स्मृतियों को नमन】




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2-चिलमन- अनिता मण्डा


चिलमन-अनिता मण्डा
यमुना पर पतवार चलाते
मत्स्यगंधा के दो हाथ
भूल गए थे क्या
प्रतिरोध की भाषा
या मन में अतिक्रमण 
कर दिया था लोभ ने
फूलों -सा महकने की इच्छा ने
छोड़ दी थी जग की मर्यादा
कौन-सा रंग अधिक गहरा था
महत्वाकांक्षाविवशताआशंका
एक मायावी द्वीप
एक कोहरे की चिलमन
और जन्म हुआ
अमर महाकाव्य के
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3-प्रियंका गुप्ता

 चले आना

कभी कोई नज़्म
पुकारे तुम्हें
तो चले आना
नज़्मों के पाँव नहीं होते
पर रूह होती है उनमें भी
ऐसा न हो
कि सुन के भी अनसुना कर दो तुम
रूह बर्दाश्त नहीं करती अनसुना किया जाना
बसबता रही
ताकि तुम चैन से सो सको...।
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