पथ के साथी

Tuesday, August 6, 2013

यादों के द्वार

गीत
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
रस भरे गीतों की छाई बहार ,
धीरे से खोल गई यादों के द्वार

चूल्हे पे  छोटी-छोटी रोटी पकाना
अम्मा का हौले से देख मुस्कुराना
दादी का प्यार लगे देंगी जग वार
धीरे से खोल गई यादों के द्वार

जीजी से सीख लिया चोटी बनाना
भैया सिखाते थे साइकिल चलाना
दोनों की उतरन में पहना था प्यार
धीरे से खोल गई यादों के द्वार

अँगना में नीम हँसे देहरी पे आम
उमंग भरी ,झूलूँ ,दुपहरी से शाम
कौन घड़ी काट गई सपनों के तार
धीरे से खोल गई यादों के द्वार

भूल गई हँसना भूल गई गीत
रीत गई कैसे जीवन से प्रीत
लो मैंने ताक़ धरीं हसरत हजार
धीरे से खोल गई यादों के द्वार

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