पथ के साथी

Friday, September 14, 2012

कुछ गीत मधुर गुनगुनाएँ-कमला निखुर्पा


रस की गंगा बहती कल -कल ,
शब्दों के अनगिन  दीप जले|
भाव-लहरिया  उठती -गिरती 
जब छंद-घंटिका  मधुर बजे |
आओ इंडिया वालो अब भारत के रंग में रंग जाएँ
मिलकर  अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएँ |

हो वेद मन्त्रों से भोर सुहानी
मन में गीता का ज्ञान बसे |
ममता के आँगन में खेले 
हर बालक कान्हा बन जाए|
आओ इंडिया वालो फिर बंशी की धुन सुन मुसकाएँ
मिलकर अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएं |

आओ ओढ़ें  कबीरा की चादर,
मंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएँ|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मीरा के मन की पीर हरें|
हम गंगा तट  के वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएँ,
अपनी भाषा के परचम को लहरा, क्यों न विश्वगुरु कहलाएँ |