अनिमा दास
1-मृत्यु कलिका-सॉनेट -11
तुम्हारी प्रतीक्षा में समस्त विविक्षाएँ, त्याग दिए श्वास
तुम्हारे स्वागत में सुशोभित किया निर्जीव शरीर
यात्रापथ भी सुमनित होगा,शून्य होगा स्व कुटीर
प्रबल वेग में पवन,उड़ा ले जाएगा शेष कपास।
तुम्हारी प्रतीक्षा में, क्यों मूक- सी रहूँ मैं
भू-लग्ना?
तुम नर्तकी- सी मोहित कर मेरी समस्त भाव भंगिमा
करो अचल-स्थिर-वेगहीन— ऐ! मेरी सौंदर्य
प्रतिमा
मेरी कोठरी की कृष्णछाया रहेगी अब
स्मृतिमग्ना।
न करो अविश्वास मेरा; मैं अब यात्रा हेतु हूँ प्रस्तुत
हाँ देखो! मंदराचल पर है अद्भुत प्रकाश
की छवि
निश्चिह्न हो जाएगा एक काव्य-मेघ; एक प्रिय कवि
तुम्हारी प्रतीक्षा में..प्रकृतिमयी धरा
भी है परिप्लुत।
ऐ! मेरी मृत्यु कलिका..प्रस्फुटित ईशान्य
की मल्लिका
तुम्हारी सुगंध से सुगंधित हो रही मेरी
तनु तंत्रिका ।।
मृत्यु कलिका -12 सॉनेट
प्रातः विभास में तुम्हारा मुख्यमंडल ; दिवस भर की प्रतीक्षा
शून्य शिविर में ढहते आश्वासन की
तीर...मन का पीर
बढ़ जाता है क्षण क्षण में हृदय -कोटर का
स्वर असह्य अधीर
स्थूल शरीर में निशा गरजती..निद्रा में
जाती एक अन्वीक्षा।
वही अन्वीक्षा..कालरात्र में.. कालकोष्ठ
में .. युगों से मुक्ति की
तुम एक विद्युत्- सी चमकती हो, हो जाती अदृश्य कोलाहल में
शुष्क शाखाओं के तुहिन कणों में.. होती
हो विलीन कोंपल में
तुम रुद्ध करती छल का कपाट,मैं सुनती ध्वनि अभियुक्ति की।
समस्त सरोवर हैं शोभित शतदल से.. है
स्वर्गपथ आलोकित
भ्रम इस मिथ्या जगत का,हो रहा आकाश में चूर्ण-विचूर्ण
स्वल्प समय का यह उपन्यास दे रहा तुम्हे
उपसंहार भी पूर्ण
आओ! इस अतृप्त आत्मकल्प को करो स्पर्श..करो
मुदित।
हो पुष्पित तुम,ऐ मृत्यु कलिका!क्योंकि हूँ मैं अनंत अभिशप्ता
क्या अमर्त्य-अमृत में नहीं होगी लीन,मेरी शेष कथा-परितप्ता?
-0- कटक, ओड़िशा