पथ के साथी

Friday, December 24, 2010

कुछ हाइकु : डॉ0 सुधा गुप्ता

यादें


[ डॉ0 सुधा गुप्ता जी के कुछ हाइकु उन्हीं की हस्तलिपि में ]
ज़ख़्म


Friday, December 17, 2010

रामेश्वर जी ' लघुकथा रत्न ' से सम्मानित

12 दिसम्बर  2010 को अखिल भारतीय हिन्दी - प्रसार प्रतिष्ठान पटना की सम्मान समिति द्वारा लघुकथा के लिए रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी को ' लघुकथा रत्न' से सम्मानित किया गया । यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है जिसके लिए 'काम्बोज जी' बधाई के पात्र हैं । मेरे सन्धु परिवार की ओर से रामेश्वर जी को हार्दिक बधाई !


12  दिसम्बर  2010   - पटना



                                           डॉ सतीशराज पुष्करणा, रामेश्वर काम्बोज ' हिमांशु', श्री नचिकेता (नवगीतकार)



Sunday, December 5, 2010

कहाँ चले गए हैं गिद्ध ?


-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कहाँ चले गए हैं गिद्ध ?
बड़े-बूढ़े चिन्तित हैं
हर गाँव के -
त्रेता में भी थे गिद्ध,
द्वापर में भी थे
और कलियुग में भी थे
कुछ बरस पहले भी थे ।
पर,अब नज़र नहीं आते गिद्ध
न मरघटों में न कहीं और
छोटे शहरों में भी नहीं
महानगरों में भी
नज़र  नहीं आते हैं गिद्ध
कहाँ चले गए हैं गिद्ध ?
सभी चिन्तित हैं
सिर झुकाए बैठे हैं सब
समझ में नहीं आ रहा है
कहाँ चले गए हैं  अचानक गिद्ध ?
घूस से गले तक अघाए लोग बेफ़िक्र हैं
उनकी धृतराष्ट्री बाहों में भिंचने से
लबोदम है राष्ट्र

तड़ातड़ बेंते बरसाकर ज्ञान बाँटने वाले
मुक्ति दिलानेवाले
धर्मोपदेशक बेफ़िक्र हैं
इन्हें गिद्धों के गायब होने की चिन्ता नहीं है
बड़ी -बड़ी बहसों में शब्दों का चर्वण करनेवाले
नीतिकार चिन्तित नहीं कि
कहाँ चले गए हैं गिद्ध ?
वर्दी वाले बेफ़िक्र हैं-
उनके जूतों की कीलों के नीचे
दबी हुई हैं बेबस कराहें-
मासूमों की बेबसों की ।
लाठियाँ लेकर निकल पड़े हैं सब -हैरान हैं सब
अब सब जगह नज़र आने लगे हैं गिद्ध
अब गिद्ध नंगे नहीं रहे
वे पहने हैं तरह -तरह के परिधान
अब नज़र आ रहे हैं गिद्ध -
अँधेरी गलियों से बहुमंज़िला इमारतों तक में
तरह-तरह के भेस में
नदी घाट पर तीर्थों में,
सभाओं में जुलूस में ।
धरती से आकाश तक
अँधेरा बनकर  छा रहे

सभी जगह मँडरा रहे हैं
पैनी चोंच वाले खूँखार गिद्ध ।
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