सुषमाप्रदीप मोघे
1- वसंत
ऋतु!
पात-पात झूम उठे,
खिल जाये सारी सृष्टि हो..
तन-मन वन-आँगन
उमंग भरी वृष्टि हो....
वृक्ष लताएँ गले मिलें
मंगल गीत गान हो...
भोंरे गुन-गुन करें
सृजन गीत गान हो..
बाग की कली-कली
पुष्प बन फलितार्थ हो..
आज फिर एकबार
मौसम चरितार्थ हो...
आँगन-कानन. गली-गली
वासंतिक बयार हो...
जनमानस में लहराता
खुशियों का प्रवाह हो...
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2अहा-जिंदगी
!
आनंद का अथाह सागर
अहा ये जिन्दगी है.! ...
अंतर्मन से तृष्णा का..
राग, द्वेष, तृष्णा, विषमता
का विसर्जन हुआ है....
अहा ये जिंदगी है!
विचारों में निच्छलता का
विविधता में एकता का
कण-कण में भगवान के
अस्तित्वकाविश्वास हुआ है
अहा-जिंदगी अहा ये जिंदगी
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3- आकाश
आकाश-सा विस्तार मिल जाए
मेरी कल्पनाओं के
पंछियों को
विचारों के पंख मिल जाएँ
अक्षरों को
युवाओं को राह दिखलाएँ
जिंदगी की
धरती -सा कागज मिल जाए
लिखने को
लेखनीको ताकत मिलजाए
भावना की
सुहाने मन भावन गीत बने
कलरव पंछियों का
कोयल के गीत
तितली की रंगीनियाँ
भँवरोंकी गुनगुन
धरासे गगन तक
गूँजे सुरीले गीत
एक सपनों का संसार
धरती से आकाश तक
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सुषमाप्रदीप मोघे इंदौर