पथ के साथी

Saturday, June 2, 2018

824-जीवन हरसिंगार


डॉ कविता भट्ट
1
आज रजनीगंधा ने, उड़ेला सारा प्यार
साँसें महकीं प्रियतम-सी,जीवन हरसिंगार
2
तुम आते तो अच्छा होता, खुल जाते सभी कपाट।
लेकिन जाने की चिंता में ,मन-सागर हुआ उचाट।
3
साँसों का आना-जाना प्रिय,ईश्वर का वरदान ।
नागफनी- सा चुभे है तुम बिन, जीवन का प्रतिदान

4
उपकृत कर गए हमको ,तेरे नैनों के संवाद।
स्वयं ही बोलें, सुनें स्वयं, कोई ना वाद  विवाद

5
आपका आना चंदन-सा,
मधुऋतु के  मधु अभिनंदन-सा
प्रतिपल यों ही बीते सदा,
रति के  मनोज को वन्दन-सा
-०-
[31/05/18-9.58 अप.]
(चित्र :गूगल से साभार )