डॉ कविता भट्ट
आज रजनीगंधा ने, उड़ेला सारा प्यार ।
साँसें महकीं प्रियतम-सी,जीवन हरसिंगार ।
2
तुम आते तो अच्छा होता, खुल जाते सभी कपाट।
लेकिन जाने की चिंता
में ,मन-सागर हुआ उचाट।
3
साँसों का आना-जाना प्रिय,ईश्वर
का वरदान ।
नागफनी- सा चुभे है तुम बिन, जीवन का प्रतिदान ।
उपकृत कर गए हमको ,तेरे
नैनों के संवाद।
स्वयं ही बोलें, सुनें स्वयं, कोई ना वाद विवाद ।
5
आपका आना चंदन-सा,
मधुऋतु के मधु अभिनंदन-सा ।
प्रतिपल यों ही बीते
सदा,
रति के मनोज को वन्दन-सा ।
-०-
[31/05/18-9.58 अप.]
(चित्र :गूगल से साभार )
(चित्र :गूगल से साभार )