पथ के साथी

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Wednesday, July 11, 2018

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शारदा सैनी

मैं ढूँढू तुझको मेरे पिया,
कही नजर ना आवे गए कहाँ,
मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

तू मन से मुझको देख जरा ,
तेरे पिया यहीं, नहीं गए कहीं,
क्यूँ तेरा मनवा तरसै।
क्यूँ तेरी अँखियाँ बरसै।

बागों में जाकर ढूँढ लिया,
माली से मैंने पूछ लिया,
माली ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
हो मेरी अँखियाँ बरसै।

तालों पर जाकर ढूँढ लिया,
धोबी से मैंने पूछ लिया,
धोबी ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

कुएँ पर जाकर ढूँढ लिया,
पनिहारी से भी पूछ लिया,
पनिहारी ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

मंदिर में जाकर ढूँढ लिया
पुजारी से भी पूछ लिया
पुजारी ने किया इंकार पिया
हो मेरा मनवा तरसै
मेरी अँखियाँ बरसै

जब मिला नहीं कहीं तेरा पता
फिर खुद से ही मैंने पूछ लिया
मन मंदिर भीतर मिले पिया
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।