पथ के साथी

Monday, July 7, 2014

शब्द हार जाते हैं,



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1

मूक है वाणी

कि न पार पाते है

शब्द हार जाते हैं,

जब तुम्हारा

नभ-जैसा निर्मल

हम प्यार पाते  हैं।

2

जन्मों की यात्रा-

कि साथ रही होंगी

सुधियाँ मधु-भरीं,

आज के दिन

कौन से पुण्य पाए

हमें  पास ले आए ।


3

नैनों का जल

सागर सा अतल

अमृत भरे हुए,

जिसने जाना,

निकला वो अपना

नहीं था वो बेगाना

4

घट रीतेगा

समय भी बीतेगा,

न रीते नेह-सिन्धु,

ये रात-दिन

बढ़ता ही जाएगा

गहराई पाएगा।

5

पुण्यों की कोई

तो बात रही होगी

कि राहें मिल गईं,

जागे वसन्त

पाटल अधर पे

ॠचाएँ खिल गईं।

6

आग की नदी

युग बहाता रहा

झुलस गया प्यार,

वाणी की वर्षा

सबने की मिलके

हरित हुई धरा ।

7

आएँगे लोग

उठे हुए महल

गिरा जाएँगे लोग,

शब्दों का रस

हार नहीं पाएगा

प्रेम-गीत गाएगा

8

सिर्फ़ दो बोल,

जो मन को सींचते

वे सबको खींचते,

नील नभ में

कुछ भी विलीन हो,

वे ही रह जाएँगे ।

9

सोया हुआ जो

मन के  द्वार आके 

जगा देता है कोई,

जन्मों की नींद

रस- बाँसुरी बजा

भगा देता है कोई ।

10

प्रभु का लेखा

हमको चलाता है

नाच भी नचाता है

जब चाहता,

मन्त्र बन मन में

उतर  ही जाता है ।
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