पथ के साथी

Wednesday, September 16, 2015

आह्वान



1- आह्वा
डॉविद्याविन्दु सिंह

ह्वान हे बन्धु फिर से
कृण प्रेरित चीर का,
अन्याय के प्रतिकार में विकर्ण के स्वर का,
जो
आज के दु:शासनों, दुर्योधनों को
कर सकें परास्त
ताकि
देश फिर से बहन बेटियों का
करता रहे आदर।
-0-
2-हरी- हरी पत्तियाँ
श्रीजा

पेड़ो की ये हरी- हरी पत्तियाँ
तस्वीर है ये मौसमों की
पेड़ मत काटो
हैं ये लज्जवासन 
हमारी इस धरा के,
हँस रही है इसकी ये
डाली -डाली झूम के
इन पेड़ो की हत्या करके
बहुत पछताना पड़ेगा
इस क़त्लेआम  के बाद -
बोलो -फिर किसकी गोद में सर छिपाओगे
उन्मुक्त हैं हम  और है बंदिशे भी
बड़ी अजीब- सी है फितरत भी
धूप में तपकर सूखना भी
फिर नई आशा की किरण भी
कि आसमान न बरसे आग
अधिक बरसे जल
खेत न बनें मरुस्थल
ढकना होगा वसुधा का तन
तभी कम होगी
हर गाँव नगर की तपन ।
पेड़ों की हत्या करने से
हरियाली के दुश्मनों को
कब सुख मिल पाया है
बचाने होंगे
दिन रात कटते हरे भरे वन
तभी तो हर डाल फूलों से महकेगी
चिड़िया चहकेगी
अम्बर में उडकर
सन्देश सुनाएगी
हरियाली के गीत गाएगी
-0-

मेरी बीमार माँ




डॉ.कविता भट्ट

मेरी नींद खुली तो दिल में हलचल बड़ी थी,
घबरा के देखा मैं अस्पताल के सामने खड़ी थी
उसी समय नर्स ने रजिस्टर देखकर पुकार लगाई
हिन्दी नाम की औरत के साथ कौन आया है भाई
 आस-पास मेरे तथाकथित भाई- बहन चिल्ला रहे थे
आईसीयू में हमारी बुढ़िया माँ है ऐसा बता रहे थे
जिसे हमारे पूर्वज वर्षो पहले ओल्ड-एज होम छोड़ आए थे
वही के कर्मचारी आज सुबह ही उसे अस्पताल लाए थे

ऑक्सीजन लगी बुढ़िया कभी भी मर सकती थी
अपनी वसीयत ओल्ड एज होम के नाम कर सकती थी
समझी नहीं फटेहाल बुढ़िया को माँ क्यों बता रहे थे
घड़ियाली आँसुओ से मेरे भाई बहन क्या जता रहे थे

वहीं  जींसटॉप में इंग्लिश नामक औरत मुस्करा रही थी
जो कई सालों से खुद को हम सबकी माँ बता रही थी
क्या है, गड़बड़ झाला मुझे समझ ही नहीं आया
और मैंने पास खड़े डॉक्टर से माज़रा पुछवाया

सौतन है वो तुम्हारी माँ की जिसने साजिशन डेरा जमाया है
डॉक्टर बोला इसी ने तुम्हारी माँ को ओल्डएज होम भिजवाया है
पर मुझे लगा की डॉक्टर को भी अधूरी जानकारी थी
मात्र सौतन की नहीं, वो हम सबकी साजिश की मारी थी

लोरियाँ याद रही हमें लेकिन हम माँ को भूल गए
अपनी माँ की कुटिल सौतन के गले में ही झूल गए
मैं पास गई माँ के, नर्स खड़ी थी वार्ड के दरवाजे खोलकर
पोते पोतियों से मिलवाओ बीमार माँ रो पड़ी ये बोलकर

मैंने कहा वो अमेरिका तो कुछ इंग्लैण्ड में पढ़ रहे है
लेकिन वो तुम्हारी चिंता छोड़कर आपस में ही लड़ रहे हैं
खुद को अलग अलग परिवारों का बता रहे हैं
तुम्हारी भावी पीढ़ी हैं ऐसा कहने में घबरा रहे हैं

माँ बोली उनके साथ मुझे रखो मैं उन्हें दुलार दूँगी
सहला के जीवन, रंग, रस और संस्कार उपहार दूँगी
मेरी ममता और लोरियों का कर्ज चुकाओगे क्या
ओल्ड एज होम से वापस मुझे ले जाओगे क्या

मेरे जवाब के लिए अब भी वह बिस्तर पे पड़ी है
मेरे उत्तर की प्रतीक्षा में उसकी धड़कन बढ़ी है
मैं निरुत्तर कभी अपने तमाशबीन भाई बहनों को देखती हूँ
कभी अपनी बीमार माँ को देख जोरों से चीखती हूँ-...
क्या हम उसे घर ला सकेंगे...
या
उसे तड़पते हुए मरने देंगे ?
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)