पथ के साथी

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Monday, September 28, 2015

मन की मुँडेर


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

मन की मुँडेर पर  बैठ गया

जो पंछी चुपके से आकर

बैठे रहने दो बस यूँ ही

पछताओगे उसे उड़ाकर।

यह वह पंछी नहीं बाग़ का

डाल डाल जो गीत  सुनाए,

यह वह पंछी नहीं द्वार का

दुत्कारो वापस आ जाए।

दर्पण में जब रूप निहारो

छाया आँखों में उतरेगी

बाँधो काजल -रेख सजाकर ।

बीते पल हैं रेत नदी का

बन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं

किए आचमन खारे आँसू

सुधियों के रंग निखर गए हैं ।

सात जनम की पूँजी हमको

बिना तुम्हारे धूल पाँव की

बात सही यह आखर आखर।

जो भी पाती मिली तुम्हारी

छाती से हम रहे लगाए,

शायद जो हो मन की धड़कन

इस मन में भी आज समाए ।

छुए पोर से हमने सारे

गीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।

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  रचनाकाल:01-07 -94
अमृत सन्देश (रायपुर)19 95 ;
प्रसारण:आकाशवाणी अम्बिकापुर 15-12-  97