पथ के साथी

Tuesday, December 30, 2014

तीन कविताएँ : तीन रंग

1-बच्चे दिन
मंजु मिश्रा

लम्बी रातेंछोटे दिन 
सहमे सिकुड़े बच्चे दिन

सुबह -सवेरे सूरज लाता
मफलर लाल लपेटे दिन  ।

भोर हुए ही  सिगड़ी जलती
चाय बिना नहीं कटते दिन

लुक्का-छिप्पी, आँख-मिचौनी
धूप खेलती  सारा दिन

कभी नरम तो कभी गरम
फिर हौले -हौले होते दिन

घुसे रजाई- कम्बल में
मूँगफली -से छिलते दिन

लम्बी रातेंछोटे दिन
सहमे- सिकुड़े ,बच्चे दिन
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2-मंगल कामना
शशि पाधा

नये वर्ष के सूरज से मैंने
माँगा अब की बार
भर लाना झोली में अपनी
खुशियाँ अपरम्पार
सुख बाँटना  अँजुरी भर-भर
कोई रह ना जाए
अँगना- देहरी पर हर कोई
मंगल दीप जलाए
वर्षों से की यही कामना
तुमने वचन निभाया
हर दिन हर पल रहे हमेशा
ईश तुम्हारा साया
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3- दर्द खामोश
गुंजन अग्रवाल

दर्द खामोश
चहकते परिंदे
घुटती साँसें
दर्द से सराबोर
लिपटी तन्हाइयाँ
सर्द- सी आहें
स्वप्न हुए टुकड़े
खिलने से पहले
पल भर में
लहूलुहान फिज़ां
चीखी किलकारियाँ
जश्न मनाते
जेहाद के बहाने
सुला भावी भविष्य
हँसा कफ़न
पथराए नयन
अतिथि सूनापन
स्वप्न दफ़न ।

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