1-बच्चे दिन
मंजु मिश्रा
लम्बी रातें, छोटे दिन
सहमे सिकुड़े बच्चे दिन ।
सुबह -सवेरे सूरज लाता
मफलर लाल लपेटे दिन ।
भोर हुए ही
सिगड़ी जलती
चाय बिना नहीं कटते दिन ।
लुक्का-छिप्पी, आँख-मिचौनी
धूप खेलती
सारा दिन ॥
कभी नरम तो कभी गरम
फिर हौले -हौले होते दिन ।
घुसे रजाई- कम्बल में
मूँगफली -से छिलते दिन
लम्बी रातें, छोटे दिन
सहमे- सिकुड़े ,बच्चे दिन
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2-मंगल कामना
शशि पाधा
नये वर्ष के सूरज से मैंने
माँगा अब की बार
भर लाना झोली में अपनी
खुशियाँ अपरम्पार ।
सुख बाँटना अँजुरी भर-भर
कोई रह ना जाए
अँगना- देहरी पर हर कोई
मंगल दीप जलाए ।
वर्षों से की यही कामना
तुमने वचन निभाया
हर दिन हर पल रहे हमेशा
ईश तुम्हारा साया ।
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3- दर्द खामोश
गुंजन अग्रवाल
दर्द खामोश
चहकते परिंदे
घुटती साँसें
दर्द से सराबोर
लिपटी तन्हाइयाँ
सर्द- सी आहें
स्वप्न हुए टुकड़े
खिलने से पहले
पल भर में
लहूलुहान फिज़ां
चीखी किलकारियाँ
जश्न मनाते
जेहाद के बहाने
सुला भावी भविष्य
हँसा कफ़न
पथराए नयन
अतिथि सूनापन
स्वप्न दफ़न ।
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