पथ के साथी

Monday, October 19, 2015

कविताएँ



 1-भावना सक्सैना


राह में जब शूल हों
गोद में लेकर बढ़े
हर तूफ़ान के सामने
बनकर शिला खड़ी रहे
तम हो जब गहरे घनेरे
विश्वास का दीपक धरे
हर ताप सहने को सदा
माँ ही बस आगे बढ़े।
-0-


2-घर- सात कविताएँ- डॉ सुधा गुप्ता
1
तिनके, धागे
कतरन , पर
नन्ही चिड़िया ने
बना लिया
घर ।
2
नन्हीं काली चिड़िया
तेज़ बारिश में
घने पेड़ के पत्तों पीछे
दुबकी बैठी रही
बारिश थमी
तो पंख फरफराके
उड़ गई/अपने घर !
3
घर,
जहाँ सुकून है
थोड़ा
किच-किच/समस्या
अभाव/ताने-तिश्ने
ज़्यादा
फिर  भी काम ख़त्म होते ही
जाने को मचल उठता है
हर इंसान
अपने घर
4
घर
दो दिन घूम-फिरकर
लौटकर, आओ
तो
नया-सा लगता है घर !
5
घर,
तिनके-तिनके जोड़ा
प्राण-रस से सींचा
सजा-सँवारा
थोड़ा-सा दम्भ
थोड़ा अहंकार
कुछ ग़लतपफहमी
आए दिन
वाक्-युद्ध
न झुकने की ज़िद
उजड़ गया घर !
6
कुछ बाँस-बल्ली
कुछ छप्पर-छानी
थोड़ा-सा चून-पानी
कुछ कछरी-बिछावन
आले में रक्खे
लक्ष्मी-गणेश
माटी का चूल्हा
और कुछ जलावन
सर्वहारा का सर्वस्व ।
निर्मम बाढ़ / हरहराती आई
उसे बेघर कर
पेड़ पर टाँग
बहा ले गई घर !
7
घर उदास था
मैंने वजह पूछी
तो फफक पड़ा-
क्या कहूँ अपनी कहानी ?
मैं घर नहीं
सामान-गोदाम बना कर
रख दिया है मुझे
बड़ी सुबह / रसोई में
थोड़ी-सी चहल-पहल
रौनक़, शोर-शराबा
आठ बजते-बजते
मुझमें ताले जड़
सब चले जाते/ जाने कहाँ
पूर दिन/उदास/अकेला
ऊँघता रहा हूँ ।
रात नौ-दस लौटकर
उल्टा-सीधा खा-पीकर
अपने-अपने कमरों में
कै़द हो जाते हैं
या तो मैं गोदाम-घर हूँ
या फिर  कोई होटल !
नहीं हूँ मैं घर !!
-0-
डॉ. सुधा गुप्ता ,120 बी / 2, साकेत , मेरठ 250003