पथ के साथी

Tuesday, January 15, 2019

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मुक्तक
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
ख़ून हमारा पीकर ही वे
जोंकों जैसे बड़े हुए।
फूल समझ दुलराया जिनको
पत्थर ले वे खड़े हुए।।
जनम जनम के मूरख थे हम
जग मेले में ठगे गए।
और बहुत से बचे जो बाक़ी
वे ठगने को अड़े हुए ।।
2
पता नहीं विधना ने कैसे
अपनी जब  तक़दीर लिखी ।
शुभकर्मों के बदले धोखा,
दर्द भरी तहरीर लिखी ।
हम ही खुद को समझ न पाए
ख़ाक दूसरे समझेंगे।
जिसके हित हमने ज़हर पिया
उसने  सारी पीर लिखी ।।