पथ के साथी

Wednesday, September 16, 2009

हिन्दी


कमला निखुर्पा

हिन्दी! ना बनना तुम केवल माथे की बिन्दी,

जब चाहा सजाया माथे पर,

जब चाहा उतारा फेंक दिया।

हिन्दी! तुम बनना हाथों की कलम,

और जनना ऐसे मानस पुत्रों को,

जो कबीर बन फ़टकारे,

जाति धर्म की दीवारें तोड़ हमें उबारे।

जो सूर बन कान्हा की नटखट केलियाँ दिखलाए,

जीवन के मधुवन में मुरली की तान सुनाए।

जो मीरा बन हृदय की पीर बताए,

दीवानी हो कृष्ण की और कृष्णमय हो जाए।

हिन्दी! मत बनना तुम केवल माथे की बिन्दी,

जन-जन की पुकार बनना तु्म ।

छा जाना तुम सरकारी कार्यालयों में भी,

सभाओं में, बैठकों में, गोष्ठियों में

वार्तालाप का माध्यम बनना तुम।।

हर पत्र-परिपत्र पर अपना प्यारा रूप दिखाना तुम।

हिन्दी! छा जाना तुम मोबाइल के स्क्रीनों पर

रोमन के रंग में न रँगना

देवनागरी के संग ही आना।

केवल रोज डे या फ़्रेंडशिप डे पर ही नहीं

ईद, होली और बैशाखी पर भी,

शुभकामनाएँ देना तुम,

भावों की सरिता बहाना तुम ।

हिन्दी! तुम बनना

की पैड पर चलती उँगलियाँ

अंतरजाल के अनगिनत पृष्ठ बनना तुम,

रुपहले पर्दे को अपना स्नेहिल स्पर्श देना तुम,

उद्घोषिका के चेहरे की मुसकान में

संवाददाता के संवाद में

पत्रकार की पत्रकारिता में

छा जाना तुम

रुपहले पर्दे को छूकर सुनहरा बना देना तुम।

हिन्दी! तुम कभी ना बनना केवल माथे की बिन्दी,

तुम बनना जन गण मन की आवाज,

पंख फ़ैलाना अपने

देना सपनों को परवाज।