प्रीति अग्रवाल
1-मन दुखता हैएक शूल-सा चुभता है, मन दुखता है
जब लड़कियों के
सारे गुण एक पलड़े में, और
रूप -रंग, दूसरे में तुलता है
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।
जब दहेज की रकम
जुटाने में, दिन रात
पिता का जूता घिसता है,
एक शूल-सा चुभता है, मन दुखता है।
जब जलसों के बाहर
कूड़े के ढेर पर, जूठे पत्तल
चाटता, कोई दिखता है
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।.
कारखानों की सुलगती
भट्टी, धुँए में, जब
नन्हा बचपन, कुम्हलाता है,
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।.
महत्वाकांक्षाओं का सुनहरा जाल,
नई पीढ़ी को लुभाता है, उन्हें
जुर्म की गिरफ्त में पहुँचाता है,
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।.
शहीद दिवस पर, जवान
मैडल पाता है, और केवल वही एक सौगात,
परिवार के लिए छोड़ जाता है,
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।.
जब देश का अन्नदाता, किसान,
हमें भरपेट खिला, खुद
आँतों में घुटने दे, भूखा सो जाता है,
एक शूल- सा चुभता है , मन दुखता है।.
जब बूढ़े माँ -बाप का जोड़ा,
सब कुछ बाँटकर, खुद,
बच्चों के बीच, बँट जाता है,
एक शूल- सा चुभता है, मन दुखता है।.
जब रिश्तों के नाम पर,
खुदगर्जी और आधिपत्य का
स्वांग रचाया जाता है,
एक शूल- सा चुभता है, मन, दुखता है।.
अनदेखा करने के
लाख जतन करूँ, पर हर ओर,
यही मंज़र नज़र आता है,
एक, शूल सा, चुभता है, .....और मन,
वो...... बहुत दुखता है!!
-0-.......
2- मन वासन्ती है
अब दुखते मन को, भला
ऐसे, कैसे छोड़ दूँ
जी चाहता है
इसके अंजाम को, एक
नया, हसीन मोड़ दूँ
जब बेटियों के पिता,
दहेज की जगह शिक्षा के लिए पैसे जुटाते हैं,
उनके हौसलों को पंख लगाते हैं,
एक फूल- सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
जब नन्हा बचपन
चिड़ियों संग चहचहाता, घंटों
तितलियों के पीछे दौड़ लगाता है,
एक फूल- सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
जब सरकारी योजनाएँ, 'जय जवान,जय किसान'
के नारे को, सार्थक कर जाती है,
उन्हें यथोचित सम्मान दिलाती है,
एक फूल- सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
निःशुल्क रसोईं, और लंगरों में,
माँ अन्नपूर्णा मुस्काती है, सब को
पोषित कर, तृष्णा मिटाती है,
एक फूल सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
जब औलाद जायदाद नहीं, माँ बाप के संग- साथ,
और सेवा की, होड़ लगाती है,
उन्हें पलकों पर बिठाती है,
एक फूल- सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
जब रिश्ते, प्रेम, सद्भावना, और
समर्पण की चाशनी में पग जाते हैं,
सुख के, नित, नए अनुभव, पाते हैं
एक फूल सा खिलता है, मन तो वासन्ती है।
शुरुआत मुझसे ही होगी,
बदलाव मुझे ही लाना है,
होंगे सपने साकार, यह सोच,
मुदित मन गाता है,
एक, फूल -सा खिलता है,वह मन
वह मन रोम-रोम में भीनी -भीनी खुशबू भर देता है,
मन तो वासन्ती है!!